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________________ धख्यिान को कथाओं में हरिभद्र ने सीधी अाक्रमणात्मक शैली नहीं अपनायी है, बल्कि व्यंग्य और सुझावों के माध्यम से असंभव और मनगढन्त बातों को त्याग करने का संकेत दिया है। ताकिक खंडन करना सरल है, पर व्यंग्य द्वारा किसी गलत बात को त्याग करने की बात अन्यापदेशिक शैली में कहना कठिन है। तर्क के द्वारा किसी का खंडन कर देने पर भी तथ्य हृदय में प्रविष्ट नहीं हो पाता है। कभी-कभी तो यह भी परिणाम देखा जाता है कि प्रतिवादी दलविरोधी बन जाता है, जिससे निर्माण की अपेक्षा ध्वंसात्मक ही कार्य होता है। हरिभद्र ने यहां पौराणिक कथानों में मनगढन्त बातों को धराशायी करने के लिए व्यंग्य (विटी) आलोचक का परिचय दिया है। कृति का कथानक सरल है। यह पांच धर्तों की कथा है। प्रत्येक धर्त असंभव अबौद्धिक और काल्पनिक कथा कहता है, जिसको दूसरा धुर्त सायो रामायण, महाभारत, विष्णुपुराण, शिवपुराण आदि ग्रंथों के समानान्तर प्रमाण उद्धत कर सिद्ध करता है। अन्तिम कथा में कथन करने की प्रक्रिया कुछ परिबत्तित हो जाती है। एक नारी अपने अनुभवों की कथा कहती है और पौराणिक आख्यानों के समानान्तर अमनो जीवनी सुनाती है। अन्त में यह कहकर चारों धत्तों को प्राश्चर्यचकित कर देती है कि यदि वे इसको सत्य मान लें तो उन्हें उसकी महत्ता स्वीकार करनी पड़ेगी तथा गुलाम बनना पड़ेगा और यदि असत्य स्वीकार करें तो सभी को भोजन देना पड़ेगा। इस प्रकार एक नारी अपनी चतुराई और पाण्डित्य से उन चारों धूर्तों को मूर्ख बनाती है। धूर्ताख्यान में हरिभद्र ने नारी की विजय दिखलाकर मध्यकालीन गिरे हुए नारी समाज को उठाने की चेष्टा की है। नारी को व्यक्तिगत सम्पत्ति समझ लिया गया था, उसे बुद्धि और ज्ञान से रहित समझा जाता था। अतः समाज हितैषी हरिभद्र ने खंडपाना के चरित्र और बौद्धिक चमत्कार द्वारा अपनी सहानभूति प्रकट की है, साथ ही यह भी सिद्ध किया है कि नारी किसी भी बौद्धिक क्षेत्र में पुरुष की अपेक्षा हीन नहीं है। वह अन्नपूर्णा भी है, अतः खण्डपाना द्वारा ही सभी धर्मों के भोजन का प्रबन्ध किया गया इस कृति में कथानक का विकास कथोपकथनों और वर्णनों के बीच से होता है। इसमें मुख्य घटना, उसकी निष्पत्ति का प्रयत्न, अन्त, निष्कर्ष, उद्देश्य और वैयक्तिक परिचय प्रादि सभी पाख्यानांश उपलब्ध हैं। धत्तों द्वारा कही गयी असंभव और काल्पनिक कथाएं क्रमिक और एक इकाई में बद्ध है। अतिशयोक्ति और कुतूहल तत्व भी मध्यकालीन कथानों की प्रवृत्ति के अनुकूल है। समानान्तर रूप में पौराणिक गाथाओं से मनोरंजक और साहसिक पाख्यानों को सिद्ध कर देने से लेखक का व्यंग्य गर्भव परिलक्षित होता है। धूर्तों की कथाएं, जो उन्होंने अपने अनुभव को कथात्मक रूप से व्यक्त किया है, कथाकार की उदभवना शक्ति के उद्घाटन के साथ, कथा प्रारम्भ करने की पद्धति की परिचायिका हैं। हरिभद्र ने कल्पित कथाओं के द्वारा पौराणिक गाथानों को निस्सारता और असंगति दिखलायी है। भा तीय साहित्य में प्रयुक्त होने वाली अनेक कथानक रूढ़ियां भी इस कृति में व्यवहत हैं। जंगली हाथी का यात्री को · खदेड़ना, डाकुओं का धन प्राप्ति के लिए उत्सव पर आक्रमण और स्वर्ण निर्माण के लिए स्वर्णरस को प्राप्ति । कथानक रूढ़ियों का प्रयोग इस बात का प्रमाण है कि गाथाएं अपना व्यापक १--देखें--डॉ० ए० एन० उपाध्य की विद्वत्तापूर्ण धूर्ताख्यान की अंग्रेजी प्रस्तावना, पृ०१२-१३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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