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________________ १२१ प्राकृत कथाओं का स्थापत्य स्थापत्य का बोध अंग्रेजी के “टेकनीक" शब्द से किया जाता है। टेकनीक का अर्थ है ढंग, विधान, तरीका, जिसके माध्यम से किसी लक्ष्य की पूत्ति की गई हो। कला के क्षेत्र में लक्ष्य का तात्पर्य है--सम्पूर्ण भावाभिव्यक्ति का प्रकार। कला के विभिन्न तत्त्वों अथवा उपकरणों की योजना का वह विधान, वह ढंग, जिससे कलाकार की अनुभूति अमूर्त से मूर्त हो जाय। प्रत्येक कला की सृष्टि और प्रेरणा के लिये अनुभूति और लक्ष्य ही मुख्य तत्व हैं। जैसे कोई चित्रकार अपनी अनुभूति की रेखाओं और विभिन्न रंगों के आनुपातिक संयोग से अभिव्यक्त करता है, अमूर्त अनुभूति को मूर्तरूप प्रदान करता है। इस उद्देश्य की सिद्धि के लिये उसे एक ऐसी संवेदना को आधारशिला बनाना होता है, जिसकी पृष्ठभूमि पर वह अपनी अनुभूति को व्यक्त कर सके। अतएव इस उद्देश्य की सिद्धि में कथावस्तु के बीज अंकुरित करने पड़ते हैं, पश्चात् उसे भावों को वहन करने के लिये कुछ पात्रों की अवतारणा करनी पड़ती है। इस प्रकार तत्त्व और पात्र अवतारणा के अनन्तर उस चित्रकार का प्रयत्न इस बात का रहता है कि वह किन-किन रंगों, परिपावों के सहारे, पात्रों को कहां-कहां रखे, किन-किन परिस्थितियों की व्यंजना करे, जिससे अभिव्यंजित होने वाले भाव घनीभूत हो जायें। चित्रकार ने जिस प्रयत्न के सहारे अपने चित्र को पूर्ण किया है, वह उसकी शैली माना जायगा और भावाभिव्यक्ति की समस्त प्रक्रिया टेकनीक या स्थापत्य कही जायगी। कथा में भावों को निश्चित रूप देने के लिये जो विधान प्रस्तुत किये जाते है, जिस प्रक्रिया को अपनाया जाता है, वही उसका स्थापत्य है । तात्पर्य यह है कि निश्चित लक्ष्य अथवा एकान्त प्रभाव की पूत्ति के लिए कथा की रचना में जो एक विधानात्मक प्रक्रिया उपस्थित करनी पड़ती है, वही उसकी शिल्पविधि स्थापत्य है। कथा में अनुभूति की अभिव्यक्ति के लिए उसके अनुरूप एक लक्ष्य की कल्पना करनी पड़ती है' और लक्ष्य के स्पष्टीकरण के लिए एक मूलभाव का सहारा लेना पड़ता है । __कुशल कलाकार सर्वप्रथम एक कथावस्तु की योजना करता है, कथावस्तु की अन्विति के लिए पात्र गढ़ता है, उनके चरित्रों का उत्थान-पतन दिखलाता है। अनन्तर रूपश ली या निर्माणशैली के सहारे घटनाएं घटने लगती है और कथा मध्यविन्दुओं का स्पर्श करती हुई चरम परिणति को प्राप्त होती है। इस कार्य के लिये वर्णन, चित्रण, वातावरणनिर्माण, कथोपकथन एवं अनेक परिवेशों की योजना कथाकार को करनी पड़ती है। यह सारी योजना स्थापत्य के अन्तर्गत आती है । कला में सौन्दर्य का विचार करते समय वस्तु और आकृति (Contents and Forms) दोनों ही ग्रहण किये जाते हैं कला का वास्तविक सौन्दर्य उचित वस्तु का उचित आकृति में प्रकाशन ही लिया जाता है। वस्तु के बजाय विन्यास की नवीनता की भी अपनी स्वतन्त्रता है। शब्द विन्यास की नूतनता या वस्तु के नियोजन का कौशल सुन्दर होता है। साहित्य की मौलिकता में वस्तु के बजाय प्रकाशभंगी की महत्ता मानी गयी है। क्योंकि भाव विचार तो युग या व्यक्ति विशेष का नहीं होता, वह सार्वजनीन और सार्वकालिक ही होता है। नया युग और नये स्रष्टा उसे जिस कुशलता से नियोजित करते हैं साहित्य को मौलिकता उसी में मानी जाती है। ?--सियनो फै ओइलो लिखित दी शॉर्ट स्टोरी, पृ० १७३ । २--हं० तिवारी लि० कला०, पृ० ११४-११५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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