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________________ १र भगाया और उनके शरीर के सुगन्धित लेप को दूर किया। मुनिराज ने भौंरों के उपद्रव को शान्तिपूर्वक सहन कर घातिया कर्मों का नाश किया और केवलज्ञान प्राप्त किया। बम्पति केवली को प्रणाम कर नगर को चले गये। दोहद सम्पन्न होने पर शुभमती ने सुन्दर सुहावने समय में पुत्ररत्न को जन्म दिया। शिश का नाम कल्याण रखा गया। कल्याण के वयस्क होने पर राजा उसे राज्य देकर पोक्षित हो गया। प्रायुक्षय होने पर वह सौधर्म स्वर्ग में देव हमा। शुभमती भी मरकर उसी की देवांगना हुई। वहां से च्युत हो शुभमती का जीव हस्तिनापुर के जितशत्रु राजा के यहां मदनावली कन्या के रूप में उत्पन्न हुआ। इसका विवाह शिवपुर निवासी सिंहध्वज के साथ हुअा। कुछ समय के पश्चात् मदनावली का शरीर अत्यन्त दुर्गन्धित हो गया, जिससे नगर में जनता का रहना भी असंभव प्रतीत होने लगा। अतः राजा सिंहध्वज ने म एक महल बनवा दिया और उसक रहन की सारी व्यवस्था वहीं कर दी। एक दिन एक शुक ने शुभमती के भव का वर्णन करते हुए मुनिराज के शरीर से निकलने वाली दुर्गन्ध से घृणा करने के कारण शरीर के दुर्गन्धित होने की बात कही और प्रतिकार के लिए गन्ध द्वारा भगवान् की पूजा करने को कहा । मदनावली ने गन्ध से भगवान की पूजा की और उसका शरीर पूर्ववत् स्वस्थ हो गया। राजा रानी को हाथी पर सवार कर नगर में ले आया। वसन्तोत्सव की तैयारियां होने लगीं। इसी समय उस नगर के मनोरम नामक उद्यान में अमृततेज मुनि को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। राजा वसन्तोत्सव छोड़ कर देवी के साथ केवली की ६न्दना के लिए गया। रानी ने केवली से पूछा- भगवान्, मुझे सूचना देने वाला शुक कौन था? केवली--भद्रे वह तुम्हारा पूर्वजन्म का पति था। तुमको ज्ञान देने के लिए आया था। वह इन देवों के बीच में ही कान में कुण्डल और आभूषण पहने हुए है। रानी उस देव के पास गई और कहने लगी--आपने मेरा बड़ा उपकार किया है, मैं आपका बदला तो नहीं चुका सकती हूं, पर समय पड़ने पर यथाशक्ति आपकी सेवा करूंगी। देव--प्राज से सातवें दिन में स्वर्ग से च्युत होऊंगा। आप भी अवसर प्राने पर तुझे प्रतिबोध देने की कृपा करेंगी। मदनावली को विरक्ति हुई और वह अपने पति की आज्ञा से प्रायिका हो गई। इधर वह देव स्वर्ग से च्युत हो विद्याधर कुमार हुआ और उसका नाम मृगांक रखा गया। युवक होने पर मृगांक कुमार रत्नमाला से विवाह करने के लिए जा रहा था कि मार्ग में उसे मदनावली तपश्चरण करती हुई मिली। उसके रूप-सौन्दर्य को देखकर म गांक कुमार मोहित हो गया और उसकी तपस्या में विघ्न करने लगा। पर मदनावली अपने तपश्चरण में दृढ़ रही। मृगांक कुमार को अपनी भूल पर पश्चात्ताप हुआ और वह उसकी वन्दना कर चला गया। ___इस कृति की सभी कथाएं स्वतंत्र हैं। प्रत्येक कथा अपने में पूर्ण है और प्रत्येक कथा में घटनाचक्र किसी विशेष उद्द श्य को लेकर चलता है। जन्म-जन्मान्तर की घटनाएं उसी प्रमुख उद्देश्य के चारों ओर चक्कर लगाती रहती हैं। कथाओं में वातावरण की योजना सुन्दर रूप में हुई है। कथानक सरल है, उनमें कौटिल्य का अभा: है। घटनाओं का बाहुल्य रहने से मनोरंजन स्वल्प मात्रा में ही हो पाता है। कथानकों की गठन असंलक्ष्य नहीं है, स्पष्ट सूत्र में प्राबद्ध है। भिन्न-भिन्न कार्य-व्यापारों को एक ही सूत्र में पिरोया गया है। कथानक-जटिलता को किसी भी कथा में स्थान नहीं दिया गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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