SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७६ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन सूड, (८) सुगन्धित श्वासोच्छ्वास, (९) सुन्दर कोश (पोते), (१०) रक्तोष्ठ, (११) कुलीन, (१२) स्वयं के चिंघाड़ने की प्रतिध्वनि से मुदित होने वाला, (१३) सुन्दर मस्तकवाला, (१४) क्षमाशील, (१५) अपूर्वं शोभायुक्त तथा, (१६) पैरों में झुर्रियां रहित । ४२ पालकाप्य के गजशास्त्र में भी भद्र हस्ति के प्रायः यही लक्षण बताए हैं । ४३ प्राकृत ग्रन्थ गारगांग में भी चार प्रकार के हाथियों का वर्णन आया है । वहाँ भी भद्र गज के प्रायः यही लक्षरण बताये हैं । ४४ मन्द – यशस्तिलक के अनुसार मन्द गज में निम्न लक्षण होने चाहिए(१) निविड बन्ध, (२) भयरहित, (३) विनम्र, (४) उन्नत मस्तक, (५) कार्यभारक्षम, (६) बहुत कम थकने वाला, (७) मण्डल - युक्त, (८) गम्भीरवेदी,, (९) पृथु, (१०) झुर्रियों युक्त तथा, (११) सान्द्रपर्व ॥ ४५ पालकाप्य के गजशास्त्र में भी किंचित् परिवर्तन के साथ यही लक्षण दिये हैं । ४६ मृग - मृग जाति के गज में सोमदेव के अनुसार निम्न लक्षरण पाये जाते हैं(१) कुटिलहृदय, (२) दुष्टबुद्धि, (३) हस्व हृदयमणि (४) छोटी सुँड, ४२. व्यूढोरस्कः प्रभूतान्तरमणिरतनुः सुप्रतिष्ठांग बन्धः स्वाचारोऽन्वर्थवेदी सुरभिमुखमरुद्दीर्घ हस्तः सुकोश: । श्राताम्रोष्ठः सुजात प्रतिरवमुदितश्चारुशीर्षोद्गमश्रीः चान्तस्तत्कान्तलक्ष्मीः शमितवलिमदः शोभते भूप भद्रः ॥ - यश० सं० पू० पृ० ४६२ ४३. धैर्ये शौर्ये पटुत्वं च विनीतत्वं सुकर्मता । अन्वर्थवेदिता चैव भयरूपेष्वमूढतां ॥ सुभगत्वं च वीरत्वं भद्रस्यैते गुणास्मृताः । - गजशास्त्र, पृ०६३, श्लोक १, २ ४४ मधुगुलियपिंगलक्खो, श्रणुपुव्वसुजायदीहलंगूलो । पुरश्र उदग्गधीरो सव्वंग समाहिश्री भद्दो । - पायांग श्र० ४, उ०२, पृ० २६६ ४५. योऽच्छिद्रस्त्वयि वीतभीरवनतः पश्चात्प्रसादात्पुनः किचित्ते पुरतः समुच्छ्रित शिराः कार्येषु भारक्षमः । सोऽस्थश्रम एव मण्डलयुतो गम्भीरवेदी पृथुः, मन्देभानुकृतिर्बली रितवपुः स्यात्साद्रपर्वा नृपः ॥ - यश०, वही, पृ० ४९३ ४६. विपुलतरकर्णवदनाः महोदराः स्थलपेचकविषाणाः । बहुबललम्बमांसा हर्यक्षाः कुंजरा मन्दाः ॥ - गजशास्त्र, पृ०६७, श्लोक १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy