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________________ प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : ३९ दरी तथा चन्द्रनखा, आदि रानियों ने अनन्तवीर्य मुनिराज के पास जाकर आर्यिका व्रत ग्रहण किया तथा आत्मकल्याण में जीवन व्यतीत किया । ohar : २ बहत्तर कलाओं में प्रवीण कैकेयी उत्तरापथ के राजा शुभमति तथा रानी पृथ्वी की कन्या और राजा दशरथ को पत्नी थो । रथसंचालन - कला में विशेष निपुण होने के कारण ही उसने युद्ध के समय विशेष चातुर्य से १. रविषेणाचार्य, पद्मपुराण, भाग ३, पर्व ५८, पृ० ७७-७८ रामायण में अनेक देवी चरित्रों के साथ मन्दोदरी का चरित्र भी उत्तम माना गया है । जब हम उसके चरित्र और कृत्यों की समीक्षा करते हैं तो यह विदित होता है कि मन्दोदरी सन्धि में निपुण तथा शास्त्र में विशेष ज्ञान रखती थी । वह यह जानती थी कि राम से शत्रुता लेकर रावण का जीवन कदापि सार्थक नहीं हो सकता । इसी हेतु उसने अपने पति रावण को समझाते हुए यह परामर्श दिया कि राम से युद्ध का विचार त्याग दीजिए क्योंकि राम मानव रूप में स्वयं परमात्मा हैं । (डा० माताप्रसाद गुप्त, तुलसीदास, पृ० ३११) । मन्दोदरी के चरित्र में समय-समय पर अपने पति को "नीच" आदि संबोधनों से संबोधित करते हुए देखते हैं । ( रामचरितमानस, लंका काण्ड, ३६ ) । जैन साहित्य में मन्दोदरी का चरित्र उत्कृष्ट रूप से निरूपित है, जब कि कवितावली में मन्दोदरी का चरित्र कदाचित् और भी गिर गया है । उसमें वह रावण को " मन्दमति” ( कवितावली - लंका, १८-२१) और 'नीच" ( कवितावली, लंका, १८) तो कहती ही है साथ ही अपने पुत्र मेघनाद को भी अपशब्द कहती है । इस तरह रामचरितमानस में मन्दोदरी का चरित्र रावण के परामर्शदाता के रूप में उजागर हुआ है जब कि जैन सन्दर्भों में मन्दोदरी रावण की शुभाकांक्षिणी के रूप में चित्रित की गई है । जैन संदर्भों में मन्दोदरी एक सूक्ष्म कूटनीतिज्ञा तथा एक सफल दूती के रूप में मानी गई है । मन्दोदरी रावण की कूटनीति को जाननेवाली और भविष्य में उसके दुष्परिणामों को दृष्टि में रखनेवाली लंका में अकेली विदुषी महिला थी । ( कवितावली-लंकासुन्दरकाण्ड-१२) । २. तीर्थोद्गालिक ६०३, समवायांग १५८, स्थानांग ६७२, आवश्यक नि०४०९, पउमचरियं २४/३७-३८, पृ० २१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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