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________________ १३८ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन नेमिनाथ के समकालीन थे। ज्ञातव्य है कि कृष्ण और पद्म (या बलराम) नेमिनाथ के चचेरे भाई थे । पद्म बलभद्र कृष्ण के अग्रज थे जिनका जन्म वसुदेव की पत्नी रोहिणी तथा कृष्ण का देवकी के गर्भ से हुआ था। कृष्ण जन्म के सम्बन्ध में उत्तरपुराण में वर्णित कथा के अनुसार-एक बार अतिमुक्त नामक एक मुनि भिक्षा के लिये कंस के राजभवन में गये । वहाँ कंस की पत्नी जीवद्यशा ने उनसे हँसी में कुछ कटु वचन कह दिये जिससे क्रोधित हो अतिमुक्त मुनि ने देवकी के पुत्र द्वारा कंस व जीवद्यशा के पिता के मारे जाने का शाप दिया और देवकी पुत्र के चक्रवर्ती रूप में समस्त पृथ्वी के पालन करने के बारे में भी बताया। इस पर भयभीत कंस ने वसुदेव से कहा कि देवकी ( कंस की बहन ) के प्रसूति की सारी विधि उसके ही घर पर करें। वसुदेव ने कंस के छल को न समझ सकने के कारण प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। अतिमुक्त मुनि द्वारा देवकी और वसुदेव को भी सात पुत्रों के जन्म और अन्तिम पुत्र के चक्रवर्ती होने का पता चला।९५ इस प्रकार देवकी ने तीन बार में दो-दो युगल पुत्रों को जन्म दिया जिन्हें इन्द्र द्वारा प्रेरित नैगमेषी देव ने भद्रिलपुर नगर के अलका नामक वैश्यपुत्री के आगे डाल दिया और उनके स्थान पर मृत पुत्रों को देवकी के पास रख दिया। किन्तु जब देवकी ने सातवें पुत्र को जन्म दिया तो उसका पालन-पोषण कंस से छुपाकर करने के उद्देश्य से वसुदेव व पद्म (बलराम ) उसे नन्दगोप के घर ले गये। मार्ग में पुत्र की इच्छा रखने वाली पत्नी की उत्पन्न कन्या को भूतदेवताओं को समर्पित करने के उद्देश्य से आ रहे नन्दगोप मिले। अपना मनोरथ सिद्ध होता देख वसुदेव व पद्म पुत्र को उन्हें सौंप स्वयं उनकी कन्या को देवकी के पास ले आये । जब कंस को यह पता चला कि देवकी को कन्या उत्पन्न हुई है तो उसने सर्वप्रथम उसकी नाक चपटी कर एक धाय द्वारा तलघट में रखकर बड़े प्रयत्न से बढ़ाया। किन्तु बड़े होने पर अपनी विकृत आकृति के कारण वह विन्ध्याचल पर्वत पर सुव्रता आर्यिका के पास दीक्षा धारण कर रहने लगी।९६ ____ मथुरा में कुछ निमित्तज्ञानियों द्वारा जब कंस को कृष्ण के जीवित होने का पता चला तो उसने अनेक प्रकार से उनको मारने का प्रयास किया। इस प्रयास के अन्तर्गत कंस द्वारा पूर्वभव में सिद्ध किये सात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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