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________________ शलाका पुरुष : १३७ वंतसिका नामक माला ये चार रत्न तथा लक्ष्मण के सुदर्शन चक्र, कौमुदी गदा, सौनन्दक खड्ग, अमोधमुखी शक्ति, शार्डग धनुष, पाञ्चजन्य शंख और कौस्तुभ मणि ये सात रत्न थे जिनकी एक-एक हजार यक्षदेव पृथक-पृथक रक्षा करते थे ।१२ राम और लक्ष्मण के लक्षण स्पष्टतः 'विष्णु ( शंक, चक्र, गदा), बलराम ( हल ) एवं राम ( धनुष-बाण ) से सम्बन्धित हैं। ___ अनेक वर्षों तक सुख पूर्वक राज्य का उपभोग करने के बाद एक “दिन नागवाहिनी शय्या पर सोये हुए लक्ष्मण ने तीन स्वप्न देखे । पुरोहितों ने उसका अर्थ लक्ष्मण की असाध्य बीमारी, उनकी मृत्यु और "राम का तपोवन में जाना बताया। कुछ ही दिनों बाद लक्ष्मण को महारोग उत्पन्न हुआ और उसी से मृत्यु का वरण कर भोगों में आसक्त रहने वाले लक्ष्मण चौथी पंकप्रभा नामक पृथ्वी (नरक ) में गये । लक्ष्मण की मृत्यु से शोकाकुल राम ने पुत्रों को राज्य आदि देकर स्वयं सुग्रीव, अणुमान, विभीषण तथा अन्य ५०० राजाओं और १८० पूत्रों के साथ संयम धारण कर लिया और कालान्तर में केवलज्ञान और मोक्ष प्राप्त किया। __ खजुराहो के पार्श्वनाथ जैन मन्दिर की उत्तरी भित्ति पर सीता सहित राम की आलिंगन मति उत्कीर्ण है जिसमें त्रिभंग में अवस्थित राम चतुर्भुज हैं। राम के दो हाथों में एक लम्बा शर है जबकि एक दाहिना हाथ पालित-मुद्रा में कपिमुख हनुमान के सिर पर रखा है और दूसरा बायाँ हाथ आलिंगनमुद्रा में है। पीठ पर तूणीर और किरीट-मुकुट आदि से शोभित राम के वाम पार्श्व में सीता निरूपित हैं जिनके वाम कर में नीलोत्पल है जबकि दक्षिण कर राम के कन्धे पर आलिंगनमुद्रा में देखा जा सकता है। उत्तरपुराण एवं अन्य जैन ग्रन्थों के विवरण के अनुरूप पार्श्वनाथ जैन मन्दिर के शिखर पर दक्षिण भाग में अशोक वाटिका में बैठी क्लांतमुखी सीता और समीप ही असुर आकृतियों से घिरे हनुमान को दिखाया गया है।९४ एलोरा में राम-लक्ष्मण या अन्य किसी बलभद्र, नारायण या प्रतिनारायण की कोई मूर्ति नहीं उकेरी है। ६. पदम ( या बलराम ), कृष्ण और जरासन्ध : 'पद्म' ( या बलराम ), 'कृष्ण' और 'जरासन्ध' जैन परम्परा के क्रमशः नौवें बलभद्र, नारायण और प्रतिनारायण हैं जो बाईसवें तीर्थंकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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