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________________ शलाका पुरुष : १२७ २ नारायण या वासुदेव : दोनों ही परम्पराओं में ९ नारायण अथवा वासुदेव का उल्लेख मिलता है। प्रारम्भिक आगम ग्रन्थों में भी वासुदेव व बलदेव का उल्लेख हुआ है । पृथ्वी के तीन खण्डों पर विजय करने तथा चक्रवर्तियों के आधे अधिकार का उपभोग करने के कारण इन्हें अर्धचक्रवर्ती भी कहा गया है । ५ समवायांगसूत्र में ९ वासुदेवों ( या नारायणों) की जो सूची 'मिलती है उसे ही कालान्तर में दोनों परम्पराओं में स्वीकार किया गया । ९ वासुदेवों के नाम क्रमशः-त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषपुण्डरीक, दत्त, नारायण ( लक्ष्मण ) और कृष्ण हैं। दोनों ही परम्पराओं में वासुदेव का उल्लेख नील या कृष्ण वर्ण तथा पीत वस्त्र धारण करने वाले के रूप में किया गया है। इन्हें गरुड चिह्नांकित ध्वजा को धारण करने वाला बताया गया है। श्वेताम्बर परम्परा४२ के अनुसार-शंख (पाञ्चजन्य ), चक्र ( सुदर्शन ), गदा ( कौमुदकी), धनुष ( शाङ्ग), नन्दक ( खड्ग ), कौस्तुभ मणि और वनमाला तथा दिगम्बर परम्परा के अनुसार असि, शंख, धनुष, चक्र, शक्ति, दण्ड तथा गदा वासुदेव ( या नारायण ) के सात रत्न माने गये हैं। उपर्युक्त लक्षण स्पष्टतः ब्राह्मण परम्परा के कृष्ण का प्रभाव दरशाते हैं जिन्हें न केवल नेमिनाथ की मूर्तियों में वरन् विमलवसही एवं लूणवसही के जैन मन्दिरों में स्वतन्त्र रूप से भी शिल्पांकित किया गया । ___ आठवें वासुदेव को छोड़कर अन्य सभी का जन्म गौतम गोत्र में माना गया है । जैन परम्परा में मृत्यु के उपरान्त सभी वासुदेव नरक को प्राप्त होते हैं जबकि बलदेव को मोक्ष प्राप्त होता है। यह विचारधारा हिन्दू परम्परा की परिकल्पना के सर्वथा विपरीत है।४३ जैन परम्परा के वासुदेव, बलदेव और प्रति वासुदेव का अस्तित्व किसी न किसी रूप में ब्राह्मण देवकुल में था जिसे परिवर्तित कर तथा एक नयी पृष्ठभूमि देकर जैन पुराणों में सम्मिलित किया गया ।४४ ९. प्रतिनारायण या प्रतिवासुदेव : ६३ शलाकापुरुषों के अन्तर्गत आरम्भ में ९ प्रतिवासुदेवों, ( वासुदेव के शत्रु ) को सम्मिलित नहीं किया गया था। शीलांककृत चउप्पन्न महापुरिसचरियं, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति५ , स्थानांगसूत्र४६ और आवश्यकनियुक्ति में ६३ के स्थान पर केवल ५४ शलाकापुरुषों का ही उल्लेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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