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________________ * १२६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन विभिन्न प्रकार के सुखों का उपभोग करते हुए उनका समय सुख से व्यतीत हो रहा था कि एक दिन राजमहल की छत से उलकापात देखकर उन्हें संसार के प्रति विरक्ति हो गयी तत्पश्चात् अपने पुत्र को राज्य सौंप कर उन्होंने राजाओं के साथ संयम धारण कर लिया। कुछ ही समय में श्रुत, बुद्धि, तप, विक्रिया, औषध और चारण ऋद्धियों से विभूषित हो इन्होंने सम्मेदशिखर पर सन्यास धारण किया । अन्त में ये जयन्त नामक अनुत्तर विमान में जयसेन अहमिन्द्र हुए । २० (१२) ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती : जैन परम्परा के बारहवें तथा अन्तिम चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त का जन्म ... नेमिनाथ तीर्थंकर के तीर्थ में हुआ था। इनके पिता का नाम ब्रह्मा तथा माता का नाम चूड़ादेवी था । इनका शरीर सात धनुष ऊँचा था तथा • आयु सात सौ वर्ष थी । ३१ ९ बलभद्र या बलदेव : श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं में स्वीकार किया गया है कि प्रत्येक वासुदेव का एक सौतेला भाई होता है जो बलदेव नाम से जाना जाता है। इनकी संख्या नौ होती है । ये वासुदेव के पराक्रम से सदा जुड़े रहते हैं । इन्हें वासुदेवों से उत्तम दरशाया गया है । इन नौ बलदेवों में से प्रारम्भ के आठ बलदेव मोक्ष तथा नर्वे स्वर्ग को प्राप्त करते हैं, जबकि सभी वासुदेव मृत्यु के बाद किसी न किसी नरक में जाते हैं । दिगम्बर परम्परा के नौ बलदेवों के नाम क्रमशः विजय, अचल, सुधर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नन्दि, नन्दिमित्र, राम व पद्म हैं । 33 जैनधर्म के दोनों परम्पराओं में नौ बलदेवों को नील वस्त्र व तालवृक्ष अंकित ध्वजा को धारण करने वाला बतलाया गया है । १४ श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार ये हल, मुसल, धनुष और बाण धारण करने वाले ३५ तथा दिगम्बर परम्परा के अनुसार गदा, रत्नमाला, मुसल व हल इन चार रत्नों के स्वामी बतलाये गये हैं । सभी बलभद्र श्वेत वर्णं होते हैं । ३७ तिलोयपण्णत्ति में हल, मुसल, रथ और रत्नमाला का इनके आयुधों के रूप में उल्लेख मिलता है । 36 बलदेवों के लक्षण स्पष्टतः ब्राह्मण परम्परा के संकर्षण बलराम ( तालवृक्ष, हल, मुसल ) से ग्रहण किये गये हैं जिन्हें आदिशेष का अवतार माना गया है । बलदेवों के दो करों में धनुष और बाण का अंकन ब्राह्मण परम्परा के राम से सम्बन्धित : जान पड़ता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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