SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 365
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म अतिरिक्त इनको अन्य किसी रचना का उल्लेख नहीं मिलता। इनके जन्म स्थान व कार्यक्षेत्र का कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता। कासलीवाल ने इनका जन्म स्थान चित्तौड़ माना है।'धर्कट वंशीय होने के कारण भी इन्हें राजस्थान का माना जा सकता है । उक्त प्रन्थ में राजस्थानी संस्कृति के अभिव्यंजक निदर्शनों के कारण भी इन्हें राजस्थान का ही माना जाना चाहिये ।। ७. महाकवि नयनंदि : ये ११वीं शताब्दी के विद्वान् थे। इनकी अबतक २ कृतियाँ उपलब्ध हुई हैं और दोनों की पांडुलिपियाँ जयपुर के महावीर भवन के संग्रह में हैं । ये परमारवंशीय राजा भोजदेव त्रिभुवन नारायण के शासनकाल में हुए थे। इन्होंने प्रथम महाकाव्य "सुदंसण चरिउ" धारा नगरी के एक जैन मंदिर में समाप्त किया था। दूसरा काव्य "सयलविहि विहाण कन्व" है, जिसकी एकमात्र पांडुलिपि आमेर शास्त्र भण्डार में संग्रहीत हैं । इस कृति में अंबाडम एवं कंचीपुट का उल्लेख है। "अंबाडम" अंबावती का ही दूसरा नाम हो सकता है, जो बाद में आमेर के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इससे सिद्ध होता है कि नयनंदि इस प्रदेश में अवश्य घूमे होंगे। ८. हरिभद्र सूरि :-ये जिनेश्वर सूरि के प्रशिष्य और श्रीचन्द के शिष्य थे । यद्यपि इनका गुजरात से विशेष सम्बन्ध था, किन्तु राजस्थान में भी ये भ्रमण करते रहते थे। इनकी २ अपभ्रंश कृतियाँ ज्ञात होतो हैं :-"सनत्कुमार चरित" एवं "णमिणाह चरिउ":५ ९. कवि पल्ह :-इन्होंने १११४ ई० में खरतरगच्छ की 'गुरु परिवाडी" लिखी, जिसकी प्रति जैसलमेर के ग्रन्थ भण्डार में है। १०. श्रीचन्द :-ये ११वीं शताब्दी के अपभ्रंश कवि थे । इनकी "कथाकोस" एवं "रत्नकरण्ड श्रावकाचार" दो कृतियाँ प्राप्त हैं । इनमें श्रीमालपुर नगर का उल्लेख है. अतः ये राजस्थान से सम्बन्धित प्रतीत होते हैं।" - ११. विबुध श्रीधर :-श्रीधर १२वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि थे। इन्होंने “पासनाहचरिउ", सुकुमाल चरिउ" एवं “भविसयत्त चरिउ' ३ रचनाएँ अपभ्रंश में १. अने०, १५, किरण २, पृ० ७८ । २. जैसाऔइ, पृ० ४६७-४६८ । ३. अपभ्रंश कथा काव्य, पृ० १०२-१४१ । ४. वही। ५. अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियाँ पृ० १८७ । ६. जैभरा, पृ० २५५ । ७. जैसरा, पृ० २३१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy