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________________ समाधिमगण और अन्य धार्मिक परम्पराएँ २७ भिन्न व्यक्ति के । मेरे लिए तो मात्र इतना ही आवश्यक है कि उन्होंने आत्ममरण का प्रयास किया था या नहीं, अगर किया था, तो क्यों और किस परिस्थिति में? अपने इसी प्रयास का पृग करने के लिए विभिन्न बौद्ध ग्रन्था में उद्धृत इन नामों के द्वारा किए गए आत्ममरण के प्रयास का संकलन किया गया है। धम्मपद के अनुसार वक्कलि भगवान् बुद्ध को बहुत प्यार करता था। उसका भगवान् से अत्यधिक लगाव था। भगवान् बुद्ध उसके इस लगाव से डर गए तथा सोचने लगे कि वक्कलि इसके कारण बन्धन में पड़ता जा रहा है। इस कारण वक्कलि के कल्याण के लिए भगवान उसे अपने से अलग करते हुए कहीं दूर जाकर तपस्या करने का कहा । वक्कलि भगवान् से अलग रहने की कल्पना भी नहीं कर सकता था। वह भगवान के इस विछोह को सहन नहीं कर सका और आत्ममरण का निश्चय किया। वक्कलि द्वाग आत्ममरण करने का यह निश्चय समाधिमरण के समकक्ष नहीं है, क्योंकि यहाँ यह स्पष्ट है कि वक्कलि ने आत्ममरण का यह निश्चय भगवान् बुद्ध से अलग हो जाने की स्थिति में किया था। किसी से विछोह होने के कारण जो आत्ममरण किया जाता है वह समाधिमरण के समान नहीं हो सकता, क्योंकि समाधिमरण करने के पहले व्यक्ति को सभी नरह के राग-द्वेष से मुक्त होना अनिवार्य होता है, अन्यथा उसका यह प्रयास आत्महत्या के समान हो जाता है। संयुक्तनिकाय के अनुसार वक्कलि असाध्य रोग से पीड़ित हो गया। उसने आत्ममरण का निश्चय किया, क्योंकि रोग के कारण वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहा था तथा उसे असहनीय कष्ट भी हो रहा था। भगवान् बुद्ध ने उसके आत्ममरण के निश्चय को प्रशंसनीय एवं पवित्र कहा तथा उसके निर्वाण के लिए कामना भी की। तत्पश्चात् वक्कलि ने एक तेज धारदार हथियार की सहायता से आत्ममरण किया। ___असाध्य रोग से पीड़ित होने तथा अपने कार्यों का सम्पादन ठीक से नहीं करने के कारण वक्कलि ने आत्ममरण का जो निश्चय किया वह समाधिमरण के समकक्ष अवश्य है, क्योंकि समाधिमरण करनेवाले असाध्य रोग होने की स्थिति में आत्ममरण करते हैं। लेकिन यहाँ भी थोड़ी विभिन्नता दृष्टिगत होती है । वक्कलि ने कष्ट के कारण तथा धारदार हथियार की सहायता से आत्ममरण किया, जबकि समाधिमरण में किसी तरह के कष्टों से ऊबकर आत्ममरण नहीं किया जाता है तथा न ही किसी हथियार की सहायता ली जाती है। अत: यहाँ यही कहा जा सकता है कि वक्कलि को असहनीय .. कष्ट हो रहा था और उससे बचने के लिए ही उसने हथियार की सहायता से अपना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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