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________________ समाधिमरण और अन्य धार्मिक परम्पराएँ २५ के उदाहरण ब्राह्मण परम्परा से सम्बन्धित शास्त्रों तथा इतिहास में देखने को मिलते हैं। अत: ब्राह्मण परम्परा में अनुमोदित मृत्युवरण को सर्वथा आत्महत्या नहीं कहा जा सकता है। जिस प्रकार जैन परम्परा में मोक्ष या कैवल्य की प्राप्ति के लिए समाधिमरण किया जाता है और उसे वे आत्महत्या की कोटि में नहीं रखते हैं, उसी प्रकार ब्राह्मण परम्परा में जो मृत्युवरण किया जाता है वह मात्र मोक्ष प्राप्ति के लिए होता है, मरण की आकांक्षा से नहीं। दोनों ही परम्पराओं में मात्र मरण लेने की विधि को लेकर ही अन्तर है और इसी अन्तर के आधार पर एक परम्परा के देहत्याग को आत्महत्या कहा जाए और दूसरी परम्परा के देहत्याग को आत्महत्या से अलग कहा जाए - यह समीचीन नहीं जान पड़ता है। जहाँ तक अनशनपूर्वक समभाव से देहत्याग की बात है तो समाधिमरण की तरह ही महाप्रस्थान में भी अनशनपूर्वक समत्वभाव से देहत्याग का भाव होता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि जैन परम्परा के समाधिपूर्वक देहत्याग और ब्राह्मण परम्परा के देहत्याग में मात्र विधि का ही अन्तर है, भावनाओं का नहीं। यदि दोनों ही परम्पराओं में देहत्याग समभावपूर्वक मात्र मोक्ष प्राप्ति के लिए ही किया जाता है तो एक ही लक्ष्य की प्राप्ति (मोक्ष) के लिए किया गया देहत्याग एक परम्परा में उचित हैं और दूसरों में उचित नहीं है, यह तर्कसम्मत नहीं जान पड़ता है। बौद्ध परम्परा और समाधिमरण बौद्ध परम्परा में आत्महुत्मा या इच्छितमरण को स्वीकार नहीं किया गया है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में आत्ममरण की आज्ञा प्रदान की गई है और इसकी प्रशंसा भी की गई है। जातक आदि बौद्ध ग्रन्थों में इच्छितमरण करनेवालों पर प्रकाश डाला गया है। प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ मज्झिमनिकाय में आत्ममरण के कई दृष्टान्त आए हैं। यद्यपि इसमें उद्धृत आत्ममरण निर्वाण या कैवल्य प्राप्ति की अपेक्षा मन में आए हुए आवेग या मोह को शान्त करने के लिए ही किया गया जान पड़ता था । इस ग्रन्थ के अनुसार- एक पति ने अपनी पत्नी की हत्या मात्र इसलिए कर दी थी कि उसे डर था कि अगले जन्म में वह उसकी पत्नी नहीं बन पायेगी तथा बाद में स्वयं उसने भी आत्ममरण किया। अतः स्पष्ट है कि आत्ममरण करने के पहले उनके मन में विछोह का डर था तथा एक भावना थी कि हो सकता है इस तरह आत्ममरण करने से अगले जन्म में पुनः हम दोनों पति-पत्नी के रूप में मिल जायें । व्यक्ति का यह आत्ममरण मन में आए आवेग को शान्त करने के लिए ही किया गया था, ऐसा कहा जा सकता है। १७७ दीर्घनिकाय में लिखा गया है कि पायांसी नामक स्त्री विवाह के बाद गर्भवती हुई। Jain Education International rs For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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