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________________ २५२ : आचारांग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन संस्तारक (तृणादि का बिछौना) की प्राप्ति सुलभ न हो, (४) प्रासुक एवं एषणीय आहार-पानी सुलभ न हो, (५) और शाक्यादि भिक्षु, ब्राह्मण, भिखारी लोगों के कारण अधिक भीड़ हो और जिससे प्रज्ञावान श्रमणश्रमणी को जाने-अनजाने में स्वाध्यायादि में कठिनाई हो ।१०० साधु-साध्वी इन स्थानों पर चातुर्मास कर सकते हैं : (१) जहाँ स्वाध्याय भूमि हो, (२) मल-मूत्र के व्युत्सर्ग करने योग्य भूमि हो, (३) पीठ, फलकादि का मिलना सुलभ हो, (४) निर्दोष आहारपानी सुलभता से प्राप्त होता हो, (५) और शाक्यादि भिक्षु या भिखारी लोगों की भीड़-भाड़ अधिक न हो।१८५ चातुर्मास के पश्चात् ठहरने के कारण : वर्षावास बोत जाने पर श्रमण-श्रमणी को वहाँ से अवश्य विहार कर देना चाहिए किन्तु यदि कार्तिक महीने में पुनः वर्षा हो जाए और इस कारण मार्ग हरियाली, घास, जीव-जन्तु और जालों से युक्त हो, लोगों का आना-जाना प्रारम्भ न हुआ हो तो श्रमण-श्रमणी चातुर्मास के बाद वहाँ पन्द्रह दिन और रहे। हेमन्त ऋतु के पन्द्रह दिन बीतने के पश्चात् मार्ग जीव-जन्तुओं से रहित हो चुका हो, अनेक शाक्यादि भिक्षुगण आनेजाने लगं तो साधु-साध्वी विवेकपूर्वक विहार कर दे । १८२ मास कल्प: विहार काल में एक स्थान पर एक महीने से अधिक नहीं ठहरना यह साधु का कल्प (आचार) है । इसे मासकल्प कहा जाता है। संयमशुद्धि, धर्म-प्रचार व शासनोन्नति की दृष्टि से श्रमण श्रमणी को मर्यादित काल से अधिक एक स्थान पर नहीं ठहरना चाहिए क्योंकि श्रमण-श्रमणी का प्रत्येक आचरण मर्यादा में ही होना चाहिए जिसमें श्रमण जीवन की व्यवस्था बनी रहती है और तप-त्याग-संयम भी निर्मल रहता है । ऐसा नहीं करने से अनेक दोषों को सम्भावना है। यह लोकोक्ति ठोक ही है कि बहता पानी निर्मला पड्या सो गंदा होय । साधु तो विचरता भला, दाग न लागे कोय ॥ मासकल्प के अयोग्य स्थान : धर्मशाला, उद्यानगृह, गृहपति का कुल, एवं तापस, आदि के मठों में, जहाँ कि अन्य मतावलम्बी साधु-संन्यासी बार-बार आते जाते हों, रहते हों, वहाँ निर्ग्रन्थ मुनि को मासकल्प नहीं करना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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