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________________ श्रमणाचार : २३१ वस्त्र-गवेषणा के चार अभिग्रह : __साधु-साध्वी को वस्त्रैषणा के सभी दोषों को टाल कर चार प्रतिमाओं ( अभिग्रह) पूर्वक वस्त्र की गवेषणा करनी चाहिये। (१) अपने मन में संकल्पित वस्त्र की स्वयं याचना करना या गृहस्थ दे तो निर्दोष जानकर ग्रहण करना, यह प्रथम उद्दिष्ट प्रतिमा है। ___ (२) गृहस्थ के देखे हुए वस्त्र की ही याचना करना, दूसरी प्रेक्षित प्रतिमा है। (३) गृहस्थ का पहना हुआ उत्तरीय वस्त्र ग्रहण करना, तृतीय परिभुक्त पूर्व प्रतिमा है। और (४) उज्झित धर्मवाला ( फेंकने योग्य ) वस्त्र ग्रहण करना (जिसे कि अन्य शाक्यादि भिक्षु कोई नहीं चाहता), यह चौथी उज्झित धार्मिक प्रतिमा है ।१४ पात्र: श्रमण तुम्बे, काष्ठ एवं मिट्टी का पात्र ग्रहण कर सकता है। तरुण, स्वस्थ एवं स्थिर संहनन वाले साधु को केवल एक ही पात्र रखना चाहिये, दूसरा नहीं। १५ प्रथम श्रुतस्कन्ध में भी एक मुनि को एक ही पात्र रखने का विधान है।११ पात्र ग्रहण करने की विधि वस्त्रषणा के समान ही है। यहाँ केवल इतनी विशेषता है कि यदि वह पात्र तेल, घी, नवनीत आदि या अन्य किसी पदार्थ से स्निग्ध किया हुआ हो तो साधु उस पात्र को लेकर स्थंडिल भूमि जाये । वहाँ भूमि की प्रतिलेखना कर पात्र को धूल आदि से मसल कर रुक्ष बना लें। पात्र को सदोषता: यदि पात्र एक साधु के निमित्त से या अनेक साधु-साध्वियों के उद्देश्य से बनाया गया हो तो मुनि वह पात्र ग्रहण न करे । शेष वर्णन पिण्डेषणा व वस्त्रैषणा की तरह जानना चाहिए । शाक्यादि भिक्षुओं के लिए बनाए गए पात्र के सम्बन्ध में भी वस्त्रैषणा के वर्णन के समान ही जानना चाहिये। यदि गृहस्थ आधार्मिक दोषयुक्त आहार तैयार करे और उससे पात्र को भरकर दे तो भी मुनि ग्रहण न करे। वह स्पष्ट कह दे कि मुझे आधार्मिक आदि आहार लेना नहीं कल्पता है। वजित पात्र: ____ काष्ठ, मिट्टी आदि के अतिरिक्त धातु आदि के पात्र रखना साधु के लिए निषिद्ध है-जैसे लोह-पात्र, कढी के पात्र, ताम्र-पात्र, सोसे, चाँदी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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