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________________ १८२ : आचाराङ्ग का नोतिशास्त्रीय अध्ययन आचारांग में अहिंसा व्रत की पाँच भावनाएँ वर्णित हैं। तदन्तर्गत समिति और गुप्ति सम्बन्धी जो चर्चाएं हुई हैं, उनसे अहिंसा के दोनों रूप स्पष्ट हो जाते हैं । असत् प्रवृत्तियों से निवृत्ति करना और सदाचार रूप शुभ क्रिया में विवेकपूर्वक प्रवृत्ति दोनों ही अहिंसा महाव्रत की रक्षा एवं विशुद्धता के लिए आवश्यक है। एतदर्थ यहाँ संक्षेप में समिति एवं गुप्ति सम्बन्धी चर्चा भी अपेक्षित होगी। ___ गुप्ति-आचारांग में मुनि को मन, वचन और कायिक योग का निरोध कर अर्थात् तीन गुप्तियों सहित संयम में विचरण करने का निर्देश है ।७१ मन, वचन और काय-ये तीन योग कहलाते हैं और उन योगों का सम्यक् रूप से निरोध करना ही गुप्ति है ।७२ गुप्तियाँ तीन हैंमनोगुप्ति, वचनगप्ति और कायगुप्ति । मन को अशुभ संकल्पों से हटाना मनोगुप्ति है। वाणी की विशुद्धता रखना वचन-गुप्ति है और कायिक प्रवृत्तियों को संयमित रखना कायगुप्ति है। दूसरे शब्दों में मनोगुप्ति के अनुसार साधक को चाहिए कि वह अपने मन में पाप भावना को प्रविष्ट न होने दे । वचनगुप्ति के अनुसार वह पापयुक्त शब्दों का उच्चारण करने से अपने को रोके । काय-गुप्ति यह सिखाती है कि साधक अपने कायिक अंग-प्रत्यंगों को पाप प्रवृत्तियों में न जाने दे। इस प्रकार जहाँ एक ओर ये गुप्तियाँ अहिंसा के निवृत्यात्मक या निषेधात्मक पक्ष को स्पष्ट करती हैं, वहीं दूसरी ओर ये समितियाँ उसके प्रवृत्यात्मक पक्ष को भी स्पष्ट करती हैं। संयमी की चारित्र प्रवृत्ति को समिति कहते हैं । वस्तुतः निषेधात्मक अहिंसा में सत्प्रवृत्ति और सत्प्रवृत्यात्मक अहिंसा में हिंसा का निषेध होता है (उत्तराध्ययन में भी कहा गया है कि साधक एक ओर से निवृत्ति करे और दूसरी ओर से प्रवृत्ति करे। असंयम से निवृत्त हो और संयम में प्रवृत्त हो। (मन, वचन और काय के असत् व्यापारों का निरोध करना और सक्रियाओं में विवेकपूर्वक प्रवृत्त होना, यही प्रवृत्ति और निवृत्ति रूप अहिंसा धर्म है) ये पाँच समितियाँ श्रमण जीवन के अहिंसात्मक चारित्र की प्रवृत्ति के लिए तथा तीन गुप्तियाँ हिंसात्मक असत्प्रवृत्तियों से निवृत्त होने के लिए हैं। समितियों से सम्बन्धित विस्तृत विवेचन साध्वाचार अध्याय में किया जायेगा। फिर अहिंसा की पाँच भावनाओं के अन्तर्गत समितियों का प्रतिपादन होने से यहाँ संक्षेप में उनका उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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