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________________ आचारांग का मुक्तिमार्ग : १६३ तत्त्वों में समाहित हैं और इन दोनों में इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि एक का ज्ञान होने पर दूसरे का परिज्ञान हो जाता है। जब व्यक्ति आत्मचिन्तन करता है, उसके स्वरूप को जानने का प्रयास करता है तो वह सहज ही अन्य तत्त्वों से सम्यकतया परिचित हो जाता है। इस प्रकार आत्म स्वरूप का ज्ञाता अन्य तत्त्वों को भी सम्यक रूप से जान लेता है। एक तत्त्व के सम्यक परिज्ञान से सब तत्त्वों का तथा सब तत्त्वों के परिज्ञान से एक तत्त्व का परिज्ञान हो जाता है। इससे यह ज्ञात होता है कि एक के साथ अनेक या समस्त का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है और अनेक या सबमें एक समाहित है। इसीलिए कहा है कि एक का बोध होने पर अनेक का बोध सहज ही हो जाता है। इस प्रकार व्यक्ति अज्ञानावरण को दूर कर पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर लेता है । सम्यक ज्ञान ( Right Knowledge ) का अर्थ : सम्यक ज्ञान का अर्थ है आत्मा का ज्ञान, अपने विशुद्ध आत्मस्वरूप का यथार्थज्ञान । वस्तुतः यह सम्यक ज्ञान हो 3 आत्म सुख का कारण है। आत्म-विज्ञान की उपलब्धि होने के बाद अन्य किसी ज्ञान की उपलब्धि अपेक्षित नहीं है। वास्तविकता यह है अध्यात्म-साधना में ज्ञान की विपुलता अपेक्षित है। संक्षेप में आत्मा का वास्तविक स्वरूप क्या है, कर्म क्या है, आस्रव और बन्धन क्या है, आत्मा कर्मों के साथ आबद्ध क्यों होती है तथा उस बन्धन से वह मुक्त कैसे हो सकती है आदि तत्त्वों का यथार्थ परिबोध हो जाना ही सम्यक ज्ञान है। इसके विपरीत अयथार्थ बोध मिथ्याज्ञान है। एक आत्मतत्त्व को समग्र रूप से जान लेने पर शेष सभी तत्त्वों का बोध अपने आप हो जाता है । सम्यक् ज्ञान होने का सुफल यही है कि आत्मा वैभाविक दशा को छोड़कर अपने स्वभाव में स्थिर हो जाय, विकल्प और विकारों को छोड़कर स्वस्वरूप में लीन हो जाय । इस तरह आचारांग की दृष्टि से साधना के क्षेत्र में सम्यक् ज्ञान का वैसा ही महत्त्व है जैसा सम्यग्दर्शन का। पं० दौलतरामजी सम्यक् ज्ञान की महत्ता को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं 'जो पूरव शिव गये, जाहीं अब आगे जैहें, सो सब महिमा ज्ञानतनी, मुनिनाथ कहैहैं ।'६९ वैदिक परम्परा में भी जीवन विकास के लिए सम्यक् ज्ञान को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। मुण्डकोपनिषद् में कहा है कि ब्रह्मविद्या ( अध्यात्म विद्या ) ही समस्त विद्याओं को प्रतिष्ठा है। याज्ञवल्क्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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