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________________ षष्ठ अध्याय आचांराग का मुक्तिमार्ग भारतीय अध्यात्मवादी दर्शनों में मोक्ष प्राप्ति के लिए त्रिविध साधना-मार्ग का विधान है। जैन साधना में भी त्रिविध साधना-मार्ग का विशिष्ट एवं गौरवपूर्ण स्थान है। जैन धर्म में इस साधना का मूल आधार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्ररूप रत्नत्रय है। रत्नत्रय की एकता को ही मोक्ष मार्ग कहा गया है । जो महत्त्व योगदर्शन की साधना-पद्धति में अष्टांग योग का है वही महत्त्व जैन धर्म में रत्नत्रय मूलक साधना-पद्धति का है। आचारांग में मुक्ति-मार्ग की साधना की चर्चा अवश्य है, किन्तु उत्तरवर्ती तत्त्वार्थसूत्र आदि ग्रन्थों में जिस प्रकार स्पष्ट रूप से 'दर्शन', 'ज्ञान' और 'चारित्र' को मुक्ति का मार्ग कहा गया है और 'सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः' ( तत्त्वार्थसूत्र १।१ ) इस सूत्रगत परिभाषा को परवर्ती सभी जैन दार्शनिकों ने मान रखा है। इसका बिखरा रूप आचारांग में उपलब्ध होता है । यद्यपि आचारांग में इस त्रिविध साधना मार्ग के लिए सीधे-सीधे कहीं एक साथ 'दर्शन', 'ज्ञान' और 'चारित्र' शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। उसमें से ' किति तेसिं समुट्ठियाणं निक्खितदण्डाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं ।' इस सूत्र के द्वारा 'अहिंसा', 'प्रज्ञा' और 'समाधि' के रूप में त्रिविध साधना-मार्ग का विधान है। अन्यत्र भी ‘से हु पण्णाणंमते बुद्धे आरम्भोवरए सम्ममेयंति पासह' तथा 'जेय पण्णाणमंता य बुद्धा आरम्भोवरया'3 इन तीन पदों से रत्नत्रय अर्थात् मुक्तिमार्ग का बोध कराया गया है। 'सम्यग्दर्शन' के लिए 'पबुद्ध', 'सम्यग्ज्ञान' के लिए 'पण्णा मंता' और 'सम्यक् चारित्र' के लिए 'आरम्भोवरया' शब्द व्यवहृत है। आचारांग में सम्यग्दर्शन के लिए 'समाधि' शब्द भो आया है । __ आचारांग में हो नहीं, अपितु बौद्धदर्शन में भी शील, समाधि और प्रज्ञा रूप त्रिविध साधना-मार्ग का वर्णन है । वस्तुतः बौद्धदर्शन का यह त्रिविध साधना-मार्ग आचारांग के 'प्रज्ञा', अहिंसा और समाधिरूप साधना-मार्ग के समान ही है। तुलनात्मक दृष्टि से बौद्ध दर्शन के शील Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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