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________________ पंचम अध्याय आचाराङ्ग का नैतिक मनोविज्ञान मनोविज्ञान और आचार शास्त्र का सम्बन्ध : मनोविज्ञान यथार्थमूलक विज्ञान है, जबकि आचार-शास्त्र आदर्शात्मक विज्ञान है । मनोविज्ञान हमारे आचरण, संस्कार एवं आदतों का विश्लेषण करता है और आचार-शास्त्र आचरण की संहिता बनाता है। आचारशास्त्र जीवनमूल्यों या साध्य को व्यवहार में कार्यान्वित करने की व्यवस्था का निर्धारण करता है और मनोविज्ञान जीवन की वास्तविक प्रकृति का अन्वेषण करता है। आदर्श या साध्य की दृष्टि से शुभ या अशुभ का निर्णय या निर्धारण आचार-शास्त्र का विषय है। ___ आचारांग में मुख्य रूप से श्रमण-जीवन के व्यवहार एवं आदर्श की दृष्टि से विचार किया गया है। इनका आधुनिक मनोविज्ञान एवं नीतिशास्त्र से गहरा सम्बन्ध है, क्योंकि जीवन के साध्य का निर्धारण करने के लिए मानव की यथार्थ प्रकृति को जानना नितान्त आवश्यक है। नैतिक-साध्य का निर्धारण एक ऐसा केन्द्र बिन्दु है, जहाँ पर मनोविज्ञान एवं आचार-दर्शन दोनों मिलते हैं। दोनों को एक-दूसरे से पूर्णतः विलग नहीं किया जा सकता । मनुष्य को क्या करना चाहिए ? यह बात इस तथ्य पर आधारित है कि मनुष्य क्या है ? क्या हो सकता है ? उसकी योग्यताएँ एवं क्षमताएँ क्या हैं ? आचारांग में आचार के मनोवैज्ञानिक पहलुओं को गहराई से रखने का प्रयास किया गया है। प्रस्तुत अध्याय में हमारा विचारणीय विषय है कि आचारांग में नैतिकता के सम्बन्ध में किस सीमा तक मनोवैज्ञानिक दृष्टि को अपनाया गया है। बन्धन के कारण : ___ आचारांग का नैतिक आदर्श बन्धन से मुक्ति प्राप्त करना है अतः यह जानना आवश्यक है कि बन्धन के कारण क्या हैं ? जैन परम्परा में राग-द्वेष और मोह को बन्धन का कारण माना गया है। अतः आचारांग के सन्दर्भ में इन पर विचार करना अपेक्षित है । राग-द्वेष और मोह : __ जब किसी पदार्थ या व्यक्ति या प्राणी के प्रति लगाव या आकर्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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