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________________ १५८ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी - संघ ८१ १०७ ८२ ८३ ८४ ८५ ८६ ८७ ८८ ८९ ९४ ९५ ९३ ९७ ९८ ९९ १०० १०१ • ९१ से ९३ १२८ से १३० १०२ १०३ १०६ X ११२ Jain Education International १११ X X X X १२७ X X ७४ १ MYw ३२ x x जो भिक्षुणी पारिवासिक छन्ददान से शिक्षमाणा को भिक्षुणी बनाये । जो भिक्षुणी प्रतिवर्ष भिक्षुणी बनाये । जो भिक्षुणी वर्ष में दो भिक्षुणी बनाये । जो भिक्षुणी निरोग होते हुये छाते को धारण करे | जो भिक्षुणी निरोग होते हुए सवारी से जाये । जो भिक्षुणी संघाणी (माला) को धारण करे । जो भिक्षुणी स्त्रियों के आभूषण को धारण करे | जो भिक्षुणी सुगन्धित चूर्ण (गन्धवण्णकेन ) से नहाये । जो भिक्षुणी तिल की खली वाले जल में ( वासितकेन पिञ्ञा केन) नहाये । जो भिक्षुणी अन्य भिक्षुणी से अपने शरीर को मलवाये | जो भिक्षुणी शिक्षमाणा, श्रामणेरी अथवा गृहिणी से शरीर मलवाये । जो भिक्षुणी भिक्षु के सामने बिना पूछे आसन पर बैठे । जो भिक्षुणी अवकाश माँगे बिना प्रश्न पूछे । जो भिक्षुणी बिना कंचुक के गाँव में प्रवेश करे | जो भिक्षुणी जानबूझकर झूठ बोले । जो भिक्षुणी वचन मारे ( ओमसवाद) । जो भिक्षुणी चुगली (पेसुञ्ज) करे । जो भिक्षुणी व्यतिक्रम से धर्म का उपदेश करे | जो भिक्षुणी अन - उपसम्पन्ना के साथ दोतीन रात से अधिक एक साथ सोये । जो भिक्षुणी पुरुष के साथ सोये । जो भिक्षुणी (विदुषी भिक्षुणी को छोड़ कर ) पाँच-छः वचनों से अधिक धर्म का उपदेश करे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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