SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ X ११४ १३७ ८६ ११८ संगठनात्मक व्यवस्था एवं दण्ड-प्रक्रिया : १५५ जो भिक्षुणी कठिन या चोवर के बाँटने में बाधा डाले। यदि दो भिक्षुणियाँ एक चारपाई पर लेटें । यदि दो भिक्षुणियाँ एक ही ओढ़ने में लेटें । जो भिक्षुणी जानबूझकर दूसरी भिक्षुणी को तंग करे। जो भिक्षुणी रोगी शिष्या (सहजीवनी) की सेवा न करे। जो भिक्षुणी किसी भिक्षुणी को उपाश्रय में स्थान देकर बाद में निकाल दे। जो भिक्षणी गृहस्थ के साथ सम्पर्क रखे । जो भिक्षुणी अशान्तिपूर्ण स्वदेश में अकेले विचरण करे। जो भिक्षुणी अशान्तिपूर्ण बाह्यदेश में अकेले विचरण करे। जो भिक्षुणी वर्षाकाल में विचरण करे । जो भिक्षणी वर्षावास के पश्चात् ५-६ योजन तक न भ्रमण करे। जो भिक्षुणी राज-प्रासाद या चित्रशाला आदि देखने जाये। जो भिक्षुणी पलंग (पल्लंक) का उपयोग करे। जो भिक्षुणी सूत काते । जो भिक्षुणी गृहणियों के जैसा काम करे। जो भिक्षुणी विवाद को शान्त कराने का आश्वासन देकर बाद में शान्त न करावे। जो भिक्षुणी गृहस्थ या परिव्राजक को अपने हाथ से भोजन दे। जो भिक्षणी आवसथचीवर को न धोये। जो भिक्षुणी आवसथचीवर को धोये बिना भ्रमण के लिए जाये। जो भिक्षुणी मिथ्या विद्या (तिरच्छानविज्जा) को सीखे। १२५ ४६ ८१, ४२ ४८ ११५ ४९ x Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy