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________________ १५४ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ २७ २७ २९ X X X Jain Education International ८९ ८७ ८८ × ७५ X X ७१ X X ७२ ७६ जो भिक्षुणी भोजन काल के पूर्व ही गृहस्थों के घरों में बैठे । जो भिक्षुणी भोजनकाल के पश्चात् गृहस्थों के घरों में बैठे । जो भिक्षुणी विकाल (मध्याह्न के बाद ) गृहस्थों के घरों में बैठे । जो भिक्षुणी अन्यथा ग्रहणकर ( दुग्गहितेन ), अन्यथा धारण कर ( दुप्पधारितेन ) दूसरी भिक्षुणी की उकसावे । जो भिक्षुणी अपने या दूसरे को शाप दे । जो भिक्षुणी स्वयं को पीट-पीट कर रोये । जो भिक्षुणी निर्वस्त्र होकर स्नान करे । जो भिक्षुणी उदकशाटिका वस्त्र उचित नाप का न बनवाये । जो भिक्षुणी दूसरी भिक्षुणी के चीवर को कोई कार्य न रहने पर भी न सिले, न सिलवाये । जो भिक्षुणी पाँचवे दिन अवश्य संघाटी धारण करने के नियम का अतिक्रमण करे । जो भिक्षुणी बिना पूछे दूसरे के चीवर को धारण करे । जो भिक्षुणी गण की चीवर प्राप्ति में विघ्न डाले | जो भिक्षुणी नियमानुसार चीवर बँटवाने में बाधा डाले । जो भिक्षुणी चीवर को परिव्राजक या परिव्राजिका को दे । जो भिक्षुणी चीवर प्राप्ति की आशा कम होने से ( दुब्बलचीवर पच्चासाय) चीवर काल की अवधि (आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक) का अतिक्रमण करे | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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