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________________ १४६ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी संघ -- भिक्खुनी पातिमोक्ख के अनुसार पाँच प्रकार की आपत्तियाँ (दोष) हैं : १- पाराजिक, २-संघादिसेस, ३- निस्सग्गिय पाचित्तिय, ४- पाचित्तिय, ५- पाटिसनीय | पर इसके अतिरिक्त भी तीन अन्य आपत्तियों का वर्णन बौद्ध ग्रन्थों में मिलता है : (१) थुल्लच्चय, (२) दुक्कट, (३) दुब्भासित । पाराजिक : यह सबसे कठोर अपराध था । पाराजिक के दोषी को संघ से सर्वदा के लिए निकाल दिया जाता था तथा पुनः प्रवेश नहीं दिया जाता था । संक्षेप में, ऐसे दोषी भिक्षु भिक्षुणी संन्यास - जीवन के अयोग्य माने जाते थे । ऐसा दोषी सत्यपथ से पराजित व्यक्ति समझा जाता था । वह अपने सद्धर्म के मार्ग से च्युत हो जाता था । पाराजिक अपराधी की तुलना ऐसे व्यक्ति से की गयी है जिसका सिर काट दिया गया हो, ऐसे मुरझाये पत्ते से की गयी है जो वृक्ष से गिर गया हो, ऐसे पत्थर से को गयो है जो दो भागों में बँट गया हो । महासांघिकों के विनय में भी पाराजिक कठोरतम अपराध था । पाराजिक का अपराधी धर्मज्ञान से च्युत माना जाता था । ४ :--- भिक्षुणियों के लिए निर्धारित आठ पाराजिक निम्न हैं भिक्षुणी पाराजिक विषय जो भिक्षुणी मैथुन करे । जो भिक्षुणी चोरी करे । जो भिक्षुणी मनुष्य की हत्या करे, शस्त्र खोजे तथा मृत्यु की प्रशंसा करे । जो भिक्षुणी दिव्य शक्ति (उत्तरिमनुस्स धम्मं ) न होने पर भी उसका दावा करे । भिक्खुनी पाराजिक (थेरवादी) (महासांघिक) १ १ २ ४ १. समन्तपासादिका, भाग तृतीय, पृ० १४५७. २. " सद्धम्मा चुतो, परद्धो भट्ठो निरङ्कतो च होति". Jain Education International -वही भाग तृतीय, १४५७. 1 ३. पाचित्तिय पालि, पृ० २८७, २९१. ४. " पाराजिकेति पारं नामोच्यते धर्मज्ञानम् । ततोजीना ओजीना संजीना परिहीणा तेनाह पाराजिकेति". - भिक्षुणी विनय, १२३. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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