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________________ ६ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन व्यापक अर्थ में 'शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन भर चलती रहती है और जीवन के प्रत्येक अनुभव से इसके भण्डार में वृद्धि होती है। २३ दूसरे शब्दों में शिक्षा एक सामान्य प्रक्रिया है जो व्यक्तित्व का विकास करती है और जिसके द्वारा व्यक्ति को पारस्परिक तथा विश्व के सम्बन्धों की जानकारी होती है। मनुष्य जब जन्म लेता है तब वह असहाय की स्थिति में रहता है, किन्तु कुछ ही दिनों बाद वह अपनी जाति तथा समाज में व्यक्तियों का अनुकरण करके चलना-फिरना, खाना-पीना-बोलना आदि सीख लेता है। तत्पश्चात् यह प्रक्रिया विद्यालय में चलती है और फिर विद्यालय छोड़ने के बाद भी यह सीखने-सिखाने का क्रम जारी रहता है। इस प्रकार सीखने-सिखाने की प्रक्रिया जीवनपर्यन्त चलती रहती है। जन्म से मृत्युपर्यन्त तक हम एक-दूसरे के सम्पर्क में आते रहते हैं तथा अनेक प्रकार के अनुभव प्राप्त करते रहते हैं और इन अनुभवों से हमारे विचार, व्यवहार आदि में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। अत: व्यापक अर्थ में जीवनपर्यन्त चलनेवाली, सीखने-सिखाने की यह प्रक्रिया ही शिक्षा है। सीमित अर्थ में 'शिक्षा का अर्थ हमारी शक्तियों के विकास व सुधार के लिए चेतनापूर्वक किये गये प्रयासों से लिया जाता है। २४ साधारणत: आरम्भिक शिक्षा परिवार में दी जाती है और अधिक ज्ञानार्जन के लिए बच्चे को विद्यालय में भेज दिया जाता है, जहाँ एक निश्चित शिक्षा का विधान होता है, शिक्षा की विधियाँ निश्चित होती हैं, जो बच्चे की एक निश्चित आयु से प्रारम्भ होती है और एक निश्चित आयु तक चलती है। अत: सीमित अर्थ में ज्ञान प्राप्त करने की यह प्रक्रिया ही शिक्षा है। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में शिक्षा को परिभाषित करते हुये कहा गया है कि शिक्षा मानव समाज के ऐसे प्रयत्न को कहते हैं जो अपने समुदायगत आदर्शों के अनुसार ही अपनी आगामी पीढ़ी के विकास को एक आकार प्रदान करती है।२५ उपर्युक्त वक्तव्यों में हम देखते हैं कि पाश्चात्य विचारक जीवन की सामान्य प्रक्रिया तक ही सीमित हैं जबकि भारतीय विचारक जीवन की सामान्य प्रक्रिया से लेकर उसके चरमोत्कर्ष पर भी बल देते हैं। अत: कहा जा सकता है कि पाश्चात्य शिक्षा भौतिकता प्रधान है तो भारतीय शिक्षा अध्यात्म प्रधान। किन्तु ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि भारतीय शिक्षा में लौकिकता का अभाव है। आध्यात्मिकता के साथ-साथ लौकिकता का भी समावेश इसमें देखने को मिलता है जिसका वर्णन आगे के अध्याय में किया जायेगा। शिक्षा और जीवन जीवन को समुन्नत बनाना ही शिक्षा का लक्ष्य है। प्राचीनकाल में शिक्षा और जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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