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________________ २८६ दक्षिण भारत के जैन तीर्थ वीरशैवों को एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण शैव तीर्थस्थान के निकट जैनों की उपस्थिति असह्य हो गयी होगी और उन्होंने यहाँ के समस्त श्वेताम्बरों की हत्या कर दी। इस प्रकार श्रीशैलम् (श्रीपर्वत) से सदैव के लिये जैनों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। स-कर्णाटक (१) किष्किन्धा (२) दक्षिणापथ गोम्मटेश्वर बाहुबलि (३) शंखजिनालय १. किष्किन्धा जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत लंका, पाताललंका आदि के साथ किष्किन्धा का भी उल्लेख किया है और यहाँ भगवान् शान्तिनाथ के मंदिर होने की बात कही है । ___ जैन पौराणिक साहित्य और रामायण में उल्लिखित किष्किन्धा को वर्तमान में पम्पा ( कर्णाटक प्रान्त के बेलारी जिलान्तर्गत आधुनिक हम्पी ) के निकट स्थित माना जाता है। जैन पौराणिक साहित्य में इस स्थान का उल्लेख तो मिलता है, परन्तु जिनप्रभसूरि को छोड़कर किसी अन्य जैन ग्रन्थकार ने स्पष्टरूप से जैन तीर्थ के रूप में इस स्थान का उल्लेख नहीं किया है। चूंकि जैन पौराणिक कथाओं में वर्णित होने के कारण ये स्थान पवित्र माने जाते रहे होंगें, अतः जिनप्रभसूरि ने वहाँ जैन तीर्थ होने की कल्पना कर ली होगी। १. वीर शैवों द्वारा जैनों के बस्तियों को नष्ट करने, उनके मंदिरों एवं प्रतिमाओं को क्षतिग्रस्त करने. उन्हें शास्त्रार्थ में अनीतिपूर्वक पराजित कर अपमानित करने आदि ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिससे सिद्ध हो जाता है कि उनके द्वारा जैनों को अत्यधिक क्षति पहुंचायी गयी। इस सम्बन्ध में विस्तृत विवरण के लिये द्रष्टव्य-सालेटोर, बी०ए. "मिडुवल जैनिज्म" पृ० २८०-२८२ । २. सरकार, दिनेशचन्द्र-स्टडीज इन ज्योग्राफी ऑफ ऐन्शेंट एण्ड मिडवल इण्डिया ( द्वि० संस्करण ) पृ. ३०८ । ३. पउमचरिउ-विमलसूरि (ई० सन् छठी शती) ८।२२९; ९।२४; ४७।१,३३; ९०११४ आदि; जोहरापुरकर, विद्याधर-तीर्थवन्दनसंग्रह, पृ० १२८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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