SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८५ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन आज यहाँ जो जिनालय विद्यमान है वह प्राचीन तो है, परन्तु बार-बार के पुनर्निर्माण से उसकी मौलिकता पूर्णतया लुप्त हो गई है। जिनालय में वि०सं० १३३३ से लेकर वि० सं० १७६७ तक के लेख विद्यमान हैं, जो यहाँ आये तीर्थयात्रीसंघों द्वारा कराये गये निर्माण एवं पुननिर्माण के अवसरपर उत्कीर्ण कराये गये हैं। वर्तमान युग में इसका पुनर्निर्माण वि० सं०१९५५-५६ में शान्तिविजयसूरि द्वारा सम्पन्न कराया गया है। ३. श्रीपर्वत श्रीपर्वत जिसे श्रीशैलपर्वत भी कहते हैं, आन्ध्रप्रदेश के कर्नूल जिले में विद्यमान है। इसकी गणना १२ प्रसिद्ध ज्योतिलिङ्गों में की जाती है । जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत इस तीर्थ की चर्चा की है और यहाँ स्थित मल्लिनाथ और घण्टाकर्ण महावीर के जिनालयों का उल्लेख किया है । श्रीशैलपर्वत आज एक प्रसिद्ध शैव केन्द्र के रूप में विख्यात है। आज यहाँ जैनों का कोई अस्तित्व भी विद्यमान नहीं है । परन्तु यहाँ स्थित शिवालय में मुखमंडप के दोनों ओर के स्तम्भों पर शक सं० १४३३ माघ वदि १४/ई० सन् १५१२ का संस्कृत भाषामय एक लेख उत्कीर्ण है। जिसके अनुसार उक्त शिवालय के पूजारी ने श्वेताम्बरों के शीश कटवा दिये। इस बात को उक्त लेख में बड़ी प्रशंसा के साथ लिखा गया है । इसी प्रकार यहीं से प्राप्त एक अन्य अभिलेख में, जो ई० सन् १५२९ में उत्कीर्ण कराया गया, एक शैव भक्त स्वयं को "श्वेताम्बरों के लिये काल" के रूप में उल्लिखित करता है। इन उल्लेखों से. जिनप्रभसूरि की बात का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन होता है और यह स्पष्ट हो जाता है कि १६वीं शती के प्रथमचरण के पूर्व तक यहाँ श्वेताम्बरों का अस्तित्व रहा। परन्तु शैव धर्मावलम्बियों विशेषकर. १. विस्तार के लिए द्रष्टव्य-जैनसत्य प्रकाश, ( गुजराती शोधपत्रिका ) जिब्द ६ में प्रकाशित श्री ज्ञानविजय जी का लेख "श्रीकुल्पाकतीर्थ'। २. वही। ३. सालेटोर, बी०ए०-मिडुवल जैनिज्म, पृ० ३१९ । देसाई, पी०बी०–जैनिज्म इन साउथ इंडिया, पृ० २३ । ४ देसाई-वही पृ० ४०२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy