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________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [ भाग 10 माप १६६१०८ सें० मी०) उल्लेखनीय है । इस प्रतिमा में एक उच्च पादपीठ पर तीर्थंकर पद्मासन में बैठे हैं जिनके समीप अनेकों देवता उनकी सेवा में संलग्न हैं । दूसरी प्रतिमा ( ३७ ) ऋषभनाथ की एक प्रतिमा का आधार भाग है । इसके अलंकृत पादपीठ पर तीर्थंकर का लांछन वृषभ, तथा दोनों किनारों पर उनके यक्ष गोमुख तथा यक्षी चक्रेश्वरी की लघु प्राकृतियाँ उत्कीर्ण हैं । गरोली तथा जसो से प्राप्त प्रतिमाएँ गरोली से प्राप्त दो प्रतिमाएँ (३३; ऊँचाई ७८ सें० मी० तथा ३५, ऊँचाई ६० सें० मी० ) इस संग्रहालय में हैं । ये दोनों प्रतिमाएँ कायोत्सर्ग शांतिनाथ की हैं। इनमें से पहली प्रतिमा सफेद बलुए पत्थर की तथा दूसरी लाल बलुए पत्थर की । दोनों ही प्रतिमाओं पर तीर्थंकर का लांछन हिरण अंकित है। दूसरी प्रतिमा पर एक शिल्पकार का चिह्न भी अंकित है । जसो से लाल बलुए पत्थर की चार प्रतिमाएँ (१२ से १५; प्रत्येक की ऊँचाई ५८ सें० मी०) प्राप्त हुई हैं । ये प्रतिमाएँ चतुर्विंशति-पट्ट हैं जिनपर कायोत्सर्ग प्रथवा पद्मासन मुद्रा में चौबीसों तीर्थंकरों की लघु आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं (चित्र ३६७ क ) । भूतपूर्व रीवा राज्य से प्राप्त प्रतिमाएं पुराने रीवा राज्य से प्राप्त समस्त प्रतिमाएँ बलुए पत्थर से निर्मित हैं और ये कलचुरि कला का प्रतिनिधित्व करती हैं, ये प्रतिमाएँ वस्तुतः किस क्षेत्र से संबंधित हैं यह अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है । तीर्थंकर प्रतिमाएँ : इन प्रतिमाओं में ऋषभनाथ की दो प्रतिमाएं हैं जिनमें से एक प्रतिमा(३८, ऊँचाई १.३० मी०) में ऋषभनाथ को तिहरे छत्र के नीचे पद्मासन मुद्रा में दर्शाया गया है । श्वेत बलुए पत्थर की इस उत्कृष्ट प्रतिमा में तीर्थंकर के सिर के पृष्ठ भाग में कमलों का भामण्डल तथा वक्ष पर श्री वत्स चिह्न अंकित है । तीर्थंकर की जटाएँ कंधों पर लहरा रही हैं । पादपीठ पर दो सिंहों के मध्य में चतुर्भुजी चक्रेश्वरी की एक लघु प्रकृति अंकित है जो अपने ऊपरी दोनों हाथों में चक्र धारण किये हुए है । एक अन्य प्रतिमा ( ३४ ) में एक भिन्न प्रकार का केशविन्यास दिखाया गया है । नेमिनाथ की एक प्रतिमा (४०, ऊँचाई १.१४ मी०) में जो संभवत: शहडोल से प्राप्त हुई है, तीर्थंकर को पद्मासन मुद्रा में एक उच्च पादपीठ पर बैठे हुए दर्शाया गया है (चित्र ३६७ ख) । उनके ऊपर तीन पंक्तियों में इक्कीस तीर्थंकर बैठे हुए हैं । और एक-एक तीर्थंकर कायोत्सर्ग - मुद्रा में मूलनायक की दोनों श्रोर हाथियों के पास अंकित हैं । प्रतिमा के अलंकृत पादपीठ पर मूल नायक का लांछन शंख अंकित है । पादपीठ के किनारों पर यक्ष गोमेध और यक्षी अंबिका उपासिकात्रों के साथ अंकित हैं। खड़ी हुई मुद्रा में अंबिका की प्रकृति उल्लेखनीय है । अंबिका श्राम्रवृक्ष के नीचे अपने वाहन सिंह सहित खड़ी हुई है । इस संग्रहालय में Jain Education International 598 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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