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________________ अध्याय 38 ] भारत के संग्रहालय करायी थी। भरे ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित (२६; माप १.१५४३६ सें० मी०) तीर्थंकर को कायोत्सर्गमुद्रा में दिखाया गया है। तीथंकर के वक्ष पर श्री-वत्स चिह्न अंकित है । इसके पादपीठ पर लांछन (नीले?) पद्म का अंकन है जिससे प्रतीत होता है कि ये तीर्थंकर नमिनाथ हैं। नेमिनाथ की भी एक प्रतिमा (७) है जो शीर्षविहीन है तथा चार टुकड़ों में खण्डित है । इसके पादपीठ के अभिलेख के अनुसार यह प्रतिमा संवत् ११६६ (सन् ११४२) में गोलापूर्व कुल के मल्हण द्वारा प्रतिष्ठापित करायी गयी थी। नेमिनाथ की दो अन्य प्रतिमाएं और भी हैं जो क्रमशः संवत् ११९६ तथा १२२० । एक शीर्षहीन पद्मासन प्रतिमा (८; माप ७७४६४ सें० मी०) एक तीर्थंकर की है जिसकी पहचान नहीं हो सकी और जिसके पादपीठ पर अंकित अभिलेख से ज्ञात होता है कि इसकी प्रतिष्ठापना परवाड-कुल में जन्मे किसी व्यक्ति ने की थी। मऊ से प्राप्त अन्य प्रतिमाओं (६, १०, २५, ३० आदि) में तीर्थंकरों को पद्मासन तथा कायोत्सर्ग-मुद्रा में दर्शाया गया है जिन्हें लांछन के अभाव में पहचाना नही जा सका है। किसी विशाल प्रतिमा का एक खण्डित सिर (१४) भी इस संग्रहालय में उपलब्ध है जिसकी ऊँचाई ५३ सें. मी. है। यक्षी-प्रतिमाएं : इस संग्रहालय में चक्रेश्वरी यक्षी की तीन तथा अंबिका यक्षी की एक प्रतिमा है । चक्रेश्वरी की एक प्रतिमा (४६; ऊँचाई ६७ सें० मी०) मऊ में प्राप्त हुई बतायी जाती है। प्रतीत होता है कि यह प्रतिमा किसी प्रकार खजुराहो से आई होगी। आभूषणों से अत्यंत अलंकृत यह चर्तुभुजी यक्षी अपने वाहन गरुड पर ललितासन-मुद्रा में बैठी हुयी है। उसके ऊपरी हाथों में चक्र हैं और निचले दायें और बायें हाथों में क्रमशः अक्षमाला एवं फल है (चित्र ३६६ क) । दूसरी प्रतिमा (१७) में चक्रेश्वरी के निचले बायें हाथ में शंख तथा ऊपरी दोनों हाथों में चक्र दर्शाये गये हैं। चक्रेवश्री की तीसरी प्रतिमा (४१) दूसरी प्रतिमा की भाँति ही है लेकिन यह उससे अधिक सुघड़ है। यक्षी अंबिका की प्रतिमा (४५; ऊँचाई ६७ सें. मी.) में उसे अपने शिशुओं तथा वाहन सहित आम्र-वृक्ष के नीचे बैठे हुए दिखाया गया है। उसके शीर्ष के ऊपरी भाग में नेमिनाथ की एक लघ प्रतिमा उत्कीर्ण है। अन्य प्रतिमाएँ : इस संग्रहालय में लघु देवालय के आकार की दो प्रतिमाएं हैं (१; माप ५६४३६ सें० मी०, एवं २, ६०४६६ सें० मी०) (चित्र ३६६ ख)। इनमें पद्मासन और कायोत्सर्ग तीर्थंकर-प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित दिखाया गया है। बताया जाता है कि ये प्रतिमाएं नौगाँव से आयी हैं। नौगाँव से एक पादपीठ भी प्राप्त हुआ है जिसपर ललितासन-मुद्रा में बैठी एक चतुर्भजी देवी की प्रतिमा अंकित है जिसके पार्श्व में एक अोर हाथी और दूसरी ओर सिंह दिखाये गये हैं। देवी अपने दायें ऊपरी और निचले हाथ में क्रमशः एक कमल और अक्षमाला तथा बायें हाथों में क्रमशः पाण्डुलिपि और कमण्डलु लिये हुए है। टीकमगढ़ और मोहनगढ़ से प्राप्त प्रतिमाएं बुंदेलखण्ड के अंतर्गत टीकमगढ़ तथा मोहनगढ़ (जिला टीकमगढ़, बुंदेलखण्ड) से प्राप्त चार प्रतिमाएँ इस संग्रहालय में सुरक्षित हैं। इनमें से मोहनगढ़ से प्राप्त नेमिनाथ की प्रतिमा (४; 597 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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