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________________ संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १ ____ अब किस स्वरूप वाली अबध्यमान प्रकृतियां संक्रमित होती हैं, इसको बताते हैं-जिस प्रकृति के दलिक सत्ता में हों, वह संक्रांत होती है, जिसका क्षय हो गया हो और जिसने अभी अपने स्वरूप को प्राप्त नहीं किया है अर्थात् जो अभी सत्तारूप में नहीं हुई हो उसका संक्रम नहीं होता है । क्योंकि अनुक्रम से नष्ट हुई होने से और उत्पन्न हुई नहीं होने से उसके दलिकों का ही अभाव है। ___ बध्यमान प्रकृतियों के दलिक तो सत्ता में होते ही हैं, क्योंकि वे बंधते हैं, इसलिये बंधावलिका के जाने के बाद वह तो संक्रमित हो सकती हैं, जिससे उनके सम्बन्ध में कोई प्रश्न नहीं उठता है, परन्तु अबध्यमान जो प्रकृतियां संक्रांत होती हैं उनके दलिक जो सत्ता में हैं, वे संक्रमित होते हैं । जो दलिक भोगकर क्षय हो चुके हों, वे क्षय हो जाने से संक्रांत नहीं होते हैं और जिन्होंने अपने स्वरूप को प्राप्त ही नहीं किया हो, स्वरूप से ही सत्ता में न हों, वे सत्ता में ही नहीं होने से संक्रांत नहीं होते हैं। तात्पर्य यह कि सत्ता में विद्यमान अबध्यमान प्रकृतियों के दलिक बध्यमान प्रकृति रूप होते हैं । अबध्यमान प्रकृतियों का बध्यमान प्रकृतियों में अथवा बध्यमान का बध्यमान में जो संक्रम होता है, वह संक्रम कहलाता है, ऐसा जो संक्रम का लक्षण कहा गया है, वह परिपूर्ण नहीं है। क्योंकि मिश्रमोहनीय और सम्यक्त्वमोहनीय बंधती नहीं हैं, लेकिन उनमें मिथ्यात्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय का संक्रम होता है, इस बात को ध्यान में रखकर विशेष कहते हैं- 'बंधाभावेवि दिट्ठीओ' अर्थात् पतद्ग्रह रूप मिश्रमोहनीय और सम्यक्त्वमोहनीय के बंध का अभाव होने पर भी उसमें मिथ्यात्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय का संक्रम होता है। चौथे गुणस्थान से लेकर ग्यारहवें गुणस्थान तक मिथ्यात्वमोहनीय का मिश्र और सम्यक्त्वमोहनीय इन दोनों में तथा मिश्र का सम्यक्त्वमोहनीय में जो संक्रम होता है, उसे भी संक्रम कहा जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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