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________________ ५७८] सेतुबन्धम् [ त्रयोदश महीरजः कर्तृ रणमुखेऽभिमुखप्रधावितानां गजानां दृष्टिपथं संरुणद्धि । पुरो द्रष्टुं न ददातीत्यर्थः । अत एव कियन्तः शत्रवो जीवन्तीति भावः । किंभूतः । मारुतेन कम्प्यमानः प्रसार्यमाणः । अतएव वदनस्याभ्याशे निकटे मुखपट इव मुखाच्छादकपट इव । सोऽपि क्रुद्ध गजस्य मुखे दीयमानस्तदृष्टिपथं रुणद्धीत्युत्प्रेक्षा ।।५।। विमला-वायु द्वारा इधर-उधर प्रसारित होता महीरज, रण में अभिमुख दौड़ते गजों के मुख के निकट मुख-पट-सा गजों को देखने नहीं दे रहा था (अतएव कितने वीर शत्रु गजों के द्वारा मारे जाने से बच जाते थे)। विमर्श-ऋद्ध गज को नियन्त्रित करने के लिये उसके मुख पर एक वस्त्र लगा दिया जाता है, जिसे मुखपट कहते हैं। वह भी गज के दृष्टिपथ को अवरुद्ध करता है ॥५६॥ अथ द्वाभ्यामेषां क्रमेण प्रशान्तिमाह णवरि अभडवच्छत्थलवणग्गणिराप्रपत्थिउच्छलिप्राए । रुहिरणई अ महिरमो उम्मूलिपकूलपात्रवो व्व णिसुद्धो॥६०॥ [अनन्तरं च भटवक्षःस्थलव्रणमार्गनिरायतप्रस्थितोच्छ्वलितया। रुधिरनद्या च महीरज उन्मूलितकूलपादप इव निपातितम् ॥ ] रजोवृद्ध यनन्तरं च भटानां वक्षःस्थलेषु व्रणमार्गेभ्यो व्रणस्थानेभ्यो निरायतं दीर्घ यथा स्यादेवं प्रस्थितोच्छ्वलितया रुधिरनद्या महीरजो निपातितम् । मूले विच्छेदान्नाशितमित्यर्थः । कि( भूत )मिव । उन्मूलितस्य कुलस्य पादप इव । अन्ययाप्युच्छ्वलितया नद्या कूलमून्मूल्य वृक्षः पात्यते इत्युत्प्रेक्षा। वक्षःक्षतेन शौर्यमुक्तम् ॥६०॥ विमला-(पूर्वोक्त प्रकार से ) रज के बढ़ने के अनन्तर वीरों के वक्षःस्थल के व्रणस्थानों से जो लम्बी रुधिरनदी चल कर उमड़ी उससे रज उन्मूलित कूलवृक्ष-सा नष्ट कर दिया गया ॥६०॥ अर्थषां क्रमेणातिकार्यमाह पलहुणीहारणिहं संघाइअकमलणालतन्तुच्छाअम् । घोलइ दरवोच्छिण्णं मारुअभिण्णतलिणअिं रअसेसम् ॥६१॥ १. 'रजोऽयं रजसा साधं स्त्रीपुष्पगुणधूलिषु' इत्यजयकोषाद्रजशब्दस्याकारान्तस्य पुंलिङ्गत्वम्, एवं च 'कर्तृ' इति सामान्ये नपुंसकत्वे बोध्यम् । यहाँ 'रजः' धूलिवाची अकारान्त पुंल्लिङ्ग 'रज' प्रातिपदिक का प्रथमैकवचनान्त है। अतएव उसका विशेषण भी पुंल्लिग है। 'रजोऽयं रजसा साधं स्त्रीपुष्पगुणधूलिषु'--अजयकोष । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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