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________________ भूमिका ] ५३ उदात्त अलंकार---जहाँ पर समद्ध वस्तु का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाय, वहाँ उदात्त अलंकार होता है । जैसे तम्मि समयम्मि तत्थ य गायति मणोहराइ गेयाई। कुसुमपयरं मयंति य सभमरयं तियसविलयाओ ॥ नच्चंति दिव्वविन्भमसंपाइयतियसकोउहल्लाओ। वज्जतविविहमणहरतिसरीवीणासणाहाओ ॥ सम०, ६६-६७ यहां से लेकर आगे के अनेक श्लोकों में उदात अलंकार है । इसमें देवों की उत्पत्ति तथा सौख्यों का समृद्ध रूप चित्रित किया गया है। इस प्रकार समराइच्चकहा में अनेक अलकारों का सफल प्रयोग हुआ है और इन्होंने काव्य की शोभा की अभिवृद्धि की है। छन्द योजना-समराइच्चकहा में गद्य के साथ पद्य का भी प्रयोग हुआ है। पद्यों में गाथा, द्विपदी और प्रमाणिका छन्दों का प्रयोग हुआ है। इन छन्दों के लक्षण 'प्राकृतपैङ्गलम्' आदि अलंकार-ग्रन्थों से जानना चाहिए। समराइच्चकहा का सांस्कृतिक महत्त्व समराइच्चकहा साहित्यिक गुणों के साथ-साथ महनीय सांस्कृतिक गुणों से भी ओतप्रोत है। इसके माध्यम से हम विक्रम की आठवीं शताब्दी तथा उससे पूर्व के समय के महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक उपादान उपलब्ध कर तत्कालीन समाज, धर्म, भूगोल, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन की झांकी प्राप्त कर सकते हैं। इसमें चोर, जुआरी, परस्त्रीगामी, व्याभिचारिणी स्त्री, सती स्त्री, राजा, पुरोहित, ऋषि, मुनि, साध्वी, श्राविका, राजपुत्र, मन्त्री इत्यादि समाज के विभिन्न वर्ग के व्यक्तियों का सजीव चित्रण हुआ है। जनसाधारण से लेकर उच्च सुविधासम्पन्न राजवर्ग तक की जीवन-झाँकी इससे प्राप्त होती है। इस प्रकार प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के परिज्ञान के लिए यह अत्युपयोगी है। भौगोलिक दृष्टि से इसमें जम्बूद्वीप, चीनद्वीप, महाकराहद्वीप, सुवर्णद्वीप, सिंहलद्वीप, रत्नद्वीप आदि द्वीपों तथा अवन्ति, उत्तरापथ, करहाटक, कलिंग, कामरूप, काशी, कोसल, कोंकण, गान्धार, पुण्ड्रवत्स तथा विदेह प्रभृति जनपदों का विवरण प्राप्त होता है। अयोध्या, अचलपुर, अमरपुर, उज्जयिनी, काकन्दी कनकपुर, काम्पिल्य, कुसुमपुर, कौशाम्बी, कृतमंगला, गजपुर, गान्धारनगर, गन्ध-समृद्धनगर, चक्रपुर, चक्रवालपुर, चम्पापुरी, जयपुर, जयस्थल, टंकनपुर, थानेश्वर, दन्तपुर, देवपुर, धान्यपूरक, पाटलापथ, पाटलिपुत्र, ब्रह्मपुर, भम्भानगर, मदनपुर, महासर, माकन्दी, मिथिला, रत्नपुर, रथनूपुर, रथवीरपुर, राजपुर, लक्ष्मीनिलय, वर्धनापूर, वसन्तपुर, वाराणसी, विलासपुर, विशाखवर्द्धन, विशाला, विश्वपुर, वैराटनगर, शंखपुर, शंखवर्द्धन, श्वेतविका, साकेत, सुशर्मनगर, श्रीपुर, श्रावस्ती, हस्तिनापुर, क्षितिप्रतिष्ठित, अचलपर, गज्जनक, गिरिस्थल, तथा शेखपर जैसे नगरों की प्राचीन रूपरेखा समराइच्चकहा से प्राप्त होती है। प्राचीनकाल से ही भारत के साहसी व्यापारी अनेक कष्ट झेलकर विदेशों में दूर-दूर तक व्यापार हेतु गये और वहाँ से पर्याप्त धन अजित कर इस देश को समृद्धतम बनाया। समराइच्चकहा में प्रतिपादित ताम्रलिप्ती और वैजयन्ती जैसे बन्दरगाह आज भी उन पुरुषार्थी व्यापारियों की यशोगाथा को सुनाते हैं । अरण्यसम्पदा का हमारे देश की आर्थिक समुन्नति में कम योग नहीं रहा है। कादम्बरी, चन्दनवन, दन्तरनिका, नन्दनवन, पद्मावती, प्रेतवन, विन्ध्याटवी तथा सुंसुमार जैसे वनों का वर्णन हमें पुनः वन्य प्रदेशों के संरक्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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