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________________ प्रथमो विभाग : [ ३९ =१.३१६] आस्थानमण्डपस्तस्मात् स्तुपा नव पुरः पुरः । द्वादशाम्बुजवेदीभिर्जिनसिद्धार्चाभिरन्विताः ' ।। ३१० ततो द्वादशवेदीभिजनसिद्धार्चाभिरन्वितौ । चैत्यसिद्धार्थवृक्षौ स्तस्ततोऽपि च महाध्वजाः ।। ३११ तत्पुरो जिनवासः स्याच्चतुर्दिक्ष्वपि तस्य च । चतस्रो वापिका मुक्तमत्स्याद्या निर्मलाम्भसः ।। ३१२ तत्पुरोभयपार्श्वे च बीथ्याः प्रासादयुग्मकम् । तत्पुरस्तोरणं रम्यं तस्मात्प्रासादयोर्द्वयम् ।। ३१३ सर्वाण्येतानि संवेष्टय हैमी वेदी मनोरमा । राजते केतुभिस्तुङ्गश्चर्याट्टालकादिभिः ।। ३१४ तत्पुरश्च चतुदिक्षु रत्नस्तम्भाग्रसंस्थिताः । मन्दगन्धवहाधूता राजन्ते दशधा ध्वजाः ।। ३१५ सिंहगज वृषभ खगपतिशिखिशशिरविहंसकमलचक्राङ्काः । अष्टोत्तरशतसंख्याः पृथक् पृथक् क्षुल्लकाश्च तत्प्रमिताः ॥ ३१६ चतुदिक्षु महाध्वजा ४३२० । क्षुल्लकध्वजा ४६६५६०। समस्तध्वजा ४७०८८० । प्रेक्षणमण्डप होता है ।। ३०९ || इस प्रेक्षणमण्डपके आगे आस्थानमण्डप और उसके भी आगे जिन व सिद्धोंकी प्रतिमाओंसे तथा बारह पद्मवेदिकाओंसे संयुक्त नौ स्तूप होते हैं ||३१० ।। उनके आगे बारह वेदियों एवं जिन व सिद्ध प्रतिमाओंसे संयुक्त चैत्यवृक्ष और सिद्धार्थवृक्ष होते हैं । उनके भी आगे महाध्वजायें होती हैं ।। ३११ ।। उनके आगे जिनभवन और उसकी चारों ही दिशाओं में मत्स्य आदि जलजन्तुओंसे रहित निर्मल जलवाली चार वापिकायें होती हैं ।। ३१२ ।। उनके आगे वीथीके उभय पार्श्वभाग में प्रासादयुगल, उसके आगे रमणीय तोरण और उसके आगे दो प्रासाद होते हैं ।। ३१३ ।। इन सबको वेष्टित करके स्थित मनोहर सुवर्णमय वेदी उन्नत ध्वजाओं, चर्या (मार्गों ) व अट्टालयों से सुशोभित होती है ।। ३१४ ।। उसके आगे चारों दिशाओंमें रत्नमय खभ्मोंके अग्रभागमें स्थित और मन्द वायुसे कम्पित दस प्रकारकी ध्वजायें विराजमान होती हैं ।। ३१५ ।। सिंह, गज, बैल, गरुड, मयूर, चन्द्र, सूर्य, हंस, कमल, और चक्रसे चिह्नित वे ध्वजायें संख्या में अलग अलग एक सौ आठ (१०८) होती हैं । क्षुद्र ध्वजायें भी पृथक् पृथक् उतनी मात्र ( १०८ - १०८) होती हैं ।। ३१६ ।। १०८० सिंहादिसे अंकित उन दस प्रकारकी महाध्वजाओंमेंसे एक दिशागत प्रत्येक ध्वजाकी संख्या १०८ है, अतः एक दिशागत दस प्रकारकी समस्त ध्वजाओंकी १०८ × १० हुईं, चारों दिशाओंकी इन ध्वजाओंकी संख्या १०८० X ४ = ४३२० हुई । इनमें एक एक महाध्वजाके आश्रित उपर्युक्त दस प्रकारकी क्षुद्रध्वजाएं भी प्रत्येक १०८-१०८ हैं, अतः एक एक महाध्वजाके आश्रित क्षुद्रध्वजाओंकी संख्या १० x १०८ × १०८ = ११६६४०, चारों दिशाओं में स्थित क्षुद्रध्वजाओंकी समस्त संख्या ११६६४० x ४ = ४६६५६० ; महाध्वजा ४३२० + क्षुद्रध्वजा ४६६५६० = ४७०८८० ; यह चारों दिशाओं में समस्त ध्वजाओंकी संख्या हुई । १ प सिद्धार्थाभिरन्विताः । २ आ प क्षुलुकाश्च । ३ आप क्षुल्लक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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