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________________ यथार्थ निर्णयपूर्वक ज्ञातृतत्त्व से ज्ञेयतत्त्व का विभागीकरण) (१२७ प्रश्न - इसके विपरीत ज्ञान उपयोग के पर के जानने में युक्त होने पर दुःख का उत्पादन क्यों होता है ? समाधान - इसका कारण यह है कि ज्ञान आत्मा का है और ज्ञान का स्वभाव जानना है, लेकिन वहाँ स्व के अतिरिक्त परसम्बन्धी ज्ञेयाकारों की भी उपस्थिति रहती है। लेकिन जाननक्रिया अपने स्वामी को छोड़ कर, परसंबंधी ज्ञेयाकारों के जानने के लिए परसन्मुखवृत्ति कर लेती है। अज्ञानी आत्मा ने अनादि काल से अपने स्वरूप को तो कभी जाना नहीं तथा पहिचाना भी नहीं, मात्र पर का ही परिचय किया है। श्रद्धा की विपरीतता के कारण, पर को पर के रूप में नहीं जानकर स्व के रूप में जानता चला आ रहा है। श्रद्धा ने भी पर को ही स्व के रूप में स्वीकार कर रखा है अत: अज्ञानी नि:शंक होकर पर को ही स्व के रूप में मानता चला आ रहा है। फलस्वरूप आत्मा के अन्य गुण भी विपरीत परिणमन करते रहते हैं। अरहंत भगवान सुखी कैसे हैं ? अरहंत भगवान का ज्ञान तो क्षायिक हो गया। जो कुछ भी स्व है, वह सम्पूर्ण एवं पर जितना जो कुछ भी है वह सम्पूर्ण (लोकालोक) भूत भावी पर्यायों सहित अर्थात् समस्त स्व एवं पर एक ही समय में उनको प्रत्यक्ष प्रतिभासित हो गये। ऐसे ज्ञान को ही क्षायिकज्ञान, केवलज्ञान, परिपूर्णज्ञान, अतीन्द्रियज्ञान आदि अनेक नामों से कहा जाता है । इस ज्ञान में इन्द्रियों की पराधीनता का अभाव होकर ज्ञान का कार्य सीधा ज्ञान से ही होता है, अत: यह ज्ञान स्वतंत्रतापूर्वक जानने का कार्य करता रहता है। अरहंत भगवान की आत्मा के श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र, वीर्य, सुख आदि अनन्तगुण पूर्णता को प्राप्त होकर निर्विकारी हो जाते हैं एवं सामर्थ्य की सम्पूर्ण प्रगटता, पर्याय में हो जाती है। अरहंत के श्रद्धा गुण ने अपने ज्ञायकतत्त्व में अपनापन स्थापन कर लिया, ज्ञान भी स्व को ही स्व के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001865
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1999
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size11 MB
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