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________________ 113) (सुखी होने का उपाय आती है, लेकिन यह उनका अज्ञान है। "ही" और "भी" दोनों का प्रयोग एक ही वस्तु को समझने के लिए अत्यन्त उपयोगी एवं आवश्यक है। जैसे जीव की पहिचान कराना हो तो कहना होगा - जीव, जीव ही है; अजीव नहीं, धर्म नहीं, अधर्म नहीं, आकाश नही, आदि-आदि। इसमें तो "ही" शब्द के प्रयोग द्वारा ही निःशंकता एवं दृढ़ता उत्पन्न होगी। साथ ही जीव की ही पहिचान के लिये यह भी आवश्यक होगा कि जीव में ज्ञान भी. है, श्रद्धा भी है, चारित्र भी है, सुख भी है आदि-आदि के द्वारा "भी" का प्रयोग अनिवार्य हो जाता है। तब ही जीव, भले प्रकार पहिचाना जा सकता है। अतः दोनों का ही प्रयोग वस्तु के समझने के लिये अनिवार्य है। ___ अनेक विपरीत मान्यताओं के समन्वय के लिये "भी" शब्द का प्रयोग करना स्याद्वाद सिद्धान्त के साथ अन्याय है, विपरीत प्रयोग है। गृहीत मिथ्यात्व के पोषण द्वारा अपनी ही तलवार से अपना गला काटने के समान है। "ही" को एकान्तवाद का सूचक कहना नितान्त अज्ञान है . "ही" का प्रयोग तो सम्यक् एकान्त का सूचक है। इसप्रकार स्याद्वाद एवं अनेकान्त के सिद्धान्त का प्रयोजन समझकर यथास्थान उपयोग कर वस्तु स्वरूप का सम्यक् निर्णय करना चाहिये। यही आत्मार्थी का कर्तव्य है। उपसंहार सुखी होने का उपाय भाग-२ में आत्मा की अन्तर्दशा एवं स्वतत्त्व निर्णय के संबंध में हम ने विस्तृत चर्चा की, उसका संक्षेप में पुनरावलोकन करते है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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