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________________ इन्द्रभूति ] जीव के अस्तित्व सम्बन्धी चर्चा 11 / भगवान् --यदि गुण गुणी से अभिन्न हो तो गुरण-दर्शन से गुणी का भी साक्षात् दर्शन मानना ही चाहिए; अतः जीव के स्मरणादि गुणों के प्रत्यक्ष से ही गुणी जीव का भी साक्षात्कार स्वीकार करना चाहिए। जैसे कपड़े और उसके रंग के अभिन्न होने पर रंग के ग्रहण से कपड़े का भी ग्रहण हो ही जाता है, वैसे ही यदि स्मरणादि गुण प्रात्मा से अभिन्न हों तो स्मरणादि के प्रत्यक्ष से प्रात्मा का भी प्रत्यक्ष हो ही जाता है। [1556] इन्द्रभूति-गुण से गुणी भिन्न ही है, यह पक्ष स्वीकार करने से गुरग का प्रत्यक्ष होने पर भी गुणी का प्रत्यक्ष नहीं होगा। इस पक्ष में आप यह नहीं कह सकते कि स्मरणादि गुरणों के प्रत्यक्ष होने से गुरगी आत्मा भी प्रत्यक्ष है। भगवन--गुरणों को भिन्न मानने से तो घटादि का भी प्रत्यक्ष नहीं होगा; तब तुम घट की भी सिद्धि नहीं कर सकोगे। कारण यह है कि इन्द्रियों द्वारा मात्र रूपादि का ग्रहण होने से रूपादि को तो प्रत्यक्ष सिद्ध माना जा सकता है, किन्तु रूपादि से भिन्न घट का तो प्रत्यक्ष हुआ ही नहीं, फिर उस का अस्तित्व कैसे सिद्ध होगा ? इस प्रकार घटादि पदार्थ भी सिद्ध नहीं, तो फिर तुम केवल आत्मा के अभाव का ही क्यों विचार करते हो ? पहले तुम घटादि की सिद्धि करो और बाद में प्रात्मा विषयक विचार करते हुए दृष्टान्त दो कि घटादि तो प्रत्यक्ष सिद्ध हैं; अतः उसका अस्तित्व है, किन्तु जीव प्रत्यक्ष नहीं है अतः उसका अभाव है। इन्द्रभूति--गुरण कभी भी गुरणी के बिना नहीं होते; अतः गुण के ग्रहण द्वारा गुणी की भी सिद्धि हो सकती है। इस से रूपादि गुणों के ग्रहण द्वारा घटादि की सिद्धि हो जाएगी। भगवान्-इसी नियम से प्रात्मा के विषय में कथन किया जा सकता है कि स्मरणादि गुण हैं वे भी गुणी के बिना नहीं रहते / अतः यदि स्मरणादि गुणों का प्रत्यक्ष होता है तो गुणी आत्मा भी प्रत्यक्ष होनी चाहिए। तुम चाहे आत्मा का प्रत्यक्ष न मानो, किन्तु इस नियम के अनुसार स्मरणादि गुणों से भिन्न आत्मा का अस्तित्व तो तुम्हें मानना ही पड़ेगा। [1560] इन्द्रभूति-स्मरणादि गुणों का प्रत्यक्ष होने के कारण उनका कोई गुरणी होना चाहिए, यह बात तो सिद्ध होती है। किन्तु आप तो यह कहते हैं कि वह गुणी आत्मा ही है / यह ठीक नहीं, क्योंकि देह में कृशता, स्थूलता आदि गुणों के समान स्मरणादि गुण भी उपलब्ध होते हैं। अतः उनका गुणी देह को ही मान लेना चाहिए, देह से भिन्न आत्मा को नहीं / [1561] ज्ञान देह-गुण नहीं भगवान्--ज्ञानादि देह के गुण नहीं हो सकते। क्योंकि घट के समान देह मूर्त अथवा चाक्षुष है / गुण गुणी या द्रव्य के बिना नहीं रहते हैं, अतः ज्ञानादि गुणों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001850
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Canon
File Size9 MB
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