SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्षशास्त्र सटीक सम्यग्ज्ञानका वर्णन, ज्ञानके भेद और नाममतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानम् ॥९॥ ___ अर्थ- ( मतिश्रुतावधिमन:पर्ययकेवलानि ) मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल ये पांच प्रकारके (ज्ञानं) ज्ञान ( सन्ति ) है। मतिज्ञान- जो पांच इन्द्रियों और मनकी सहायतासे पदार्थको जाने उसे मतिज्ञान कहते हैं। श्रुतज्ञान- जो पांच इन्द्रियों और मनकी सहायतासे मतिज्ञानके द्वारा जाने हुए पदार्थको विशेष रूपसे जानता है उसे श्रुतज्ञान कहते हैं। अवधिज्ञान- जो इन्द्रियोंकी सहायताके बिना ही रूपी पदार्थोको द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी मर्यादा लिये हुए स्पष्ट जाने उसे अवधिज्ञान कहते हैं। मन:पर्ययज्ञान- जो किसीकी सहायताके बिना ही अन्य पुरूषके मनमें स्थित, रूपी पदार्थोको स्पष्ट जाने उसे मन:पर्ययज्ञान कहते हैं ॥९॥ केवलज्ञान- जो सब द्रव्यों तथा उनकी सब पर्यायोंको एकसाथ स्पष्ट जाने उसे केवलज्ञान कहते हैं ॥९॥ प्रमाणका लक्षण और भेद. तत्प्रमाणे ॥१०॥ अर्थ- तत् उपर कहा हुआ पांच प्रकारका ज्ञान ही ( प्रमाणे) प्रमाण (अस्ति) है। भावार्थ- सम्यग्ज्ञानको प्रमाण कहते हैं। उसके दो भेद हैं१-प्रत्यक्ष, २-परोक्ष ॥१०॥ परोक्ष प्रमाणके भेद आद्ये परोक्षम् ॥११॥ अर्थ- ( आये) आदिके दो अर्थात् मतिज्ञान और श्रुतज्ञान ( परोक्षम् ) परोक्ष प्रमाण ( स्तः ) हैं ॥११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy