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________________ १३० मोक्षशास्त्र सटीक प्रदेशबन्ध- ज्ञानावरणादि कर्मरूप होनेवाले पुदगल स्कन्धोंके परमाणुओंकी संख्याको प्रदेशबन्ध कहते हैं। नोट- इन चार प्रकारके बन्धों में प्रकृति और प्रदेशबन्ध योगके निमित्तसे होते हैं तथा स्थिति और अनुभागबन्ध कषायके निमित्तसे होते हैं॥३॥ प्रकृतिबन्धका वर्णन-प्रकृतिबन्धके मूल भेदआद्योज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नाम ___ गोत्रान्तरायाः ॥४॥ अर्थ- पहला प्रकृतिबन्ध-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय ऐसे आठ प्रकारका है। ज्ञानावरण- जो आत्माके ज्ञानगुणोंको घाते उसे ज्ञानावरण कहते हैं। दर्शनावरण- जो आत्माके दर्शनगुणको घाते उसे दर्शनावरण कहते हैं। वेदनीय-जिसके उदयसे जीवोंको सुख दुःख होवे उसे वेदनीय कहते हैं। मोहनीय- जिसके उदयसे जीव अपने स्वरूपको भूलकर अन्यको अपना समझने लगे उसे मोहनीय कहते हैं। आयु- जो इस जीवको नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवोंमें से किसी शरीर में रोक रखे उसे आयुकर्म कहते है। नाम- जिसके उदयसे शरीर आदिकी रचना हो उसे नाम-कर्म कहते है। . गोत्र- जिसके उदयसे यह जीव ऊंच नीच कुलमें पैदा होवे उसे गोत्रकर्म कहते हैं। अन्तराय-जिसके उदयसे दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्यमें विध आवे उसे अन्तराय कर्म कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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