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________________ त्रिविध आत्मा की अवधारणा एवं आध्यात्मिक विकास की अन्य अवधारणाएँ ३८१ इन गुणस्थानों का विभाजन उत्कृष्ट मलिन परिणामों से लेकर विशुद्ध परिणामों तक अथवा कषाय एवं 'वीतराग परिणाम' की विभिन्न अवस्थाओं के क्रम के आधार पर किया गया है।५७ १. मिथ्यात्वगुणस्थान मिथ्यात्वगुणस्थान से ही जीव अपनी आध्यात्मिक विकास यात्रा प्रारम्भ करते हैं। वर्तमान में जितने भी सिद्धपरमात्मा सिद्धालय में विराजमान हैं, वे भूतकाल में इसी मिथ्यात्व गुणस्थान में थे। वे सभी मिथ्यात्व का नाश करके अपनी साधना के बल से सिद्धालय में पहुंचे हैं। आचार्य वीरसेन ने धवला में मिथ्या को वितथ, अलीक तथा असत्य एवं दृष्टि को दर्शन, श्रद्धान, रूचि और प्रत्यय कहा है। जिसका दर्शन या श्रद्धान असत्य हो, वह मिथ्यादृष्टि है। यह गुणस्थान मूलतः मिथ्यात्वमोह नामक कर्मप्रकृति के उदय से होता है।६ आचार्य नेमिचन्द्र गोम्मटसार में मिथ्यात्व गुणस्थान को इस प्रकार बताते हैं कि मिथ्यात्व मोहनीयकर्म के उदय से जब जीव मिथ्यात्व परिणाम से परिणमित होता है, तब वह मिथ्यादृष्टि कहलाता है। आचार्य कुन्दकुन्द समयसार' की १३२वीं गाथा में बताते हैं कि जीव का जो तत्व का अश्रद्धान है, वह मिथ्यात्व का उदय है। एकान्त, विपरीत, विनयिक, संशय और अज्ञान से मिथ्यात्व के पांच भेद हैं। आचार्यों ने मिथ्यादृष्टि को पित्तज्वर के रोगी की उपमा दी है। जिस प्रकार पित्तज्वर के रोगी को मीठा रस अच्छा नहीं लगता; वैसे ही मिथ्यादृष्टि को यथार्थ धर्म अच्छा नहीं लगता है। आचार्य अमितगति ने श्रावकाचार में कहा है कि मिथ्यादृ ष्टि उस सर्प की तरह है, जो दूध पीकर भी पुनः विष को उगलता है। इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि जिनवाणी को सुनता भी है, आगम का अध्ययन भी करता है, पर मिथ्यात्व को नहीं छोड़ता है।' ५७ जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश भाग २ पृ २४५ । ५८ धवला १/१/१ पृ. १६२ । ५६ गोम्मटसार (जीवकाण्ड), गा. १५-१६ । ६० कुन्दकुन्द समयसार गाथा १३२ । ६१ 'पठन्त्रपिवचो जैनं मिथ्यात्वं नैवं मुंचति । कुदृष्टिः पत्रगो दुग्धं पिवनपि महाविषम् ।। २/१५ ।।' -अमितगतिश्रावकाचार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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