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________________ अन्तरात्मा का स्वरूप, लक्षण और प्रकार २१५ स्वामी कार्तिकेय ने अन्तरात्मा के तीन भेद किये हैं : (१) जघन्य अन्तरात्मा;२२ (२) मध्यम अन्तरात्मा;२३ और (३) उत्कृष्ट अन्तरात्मा। - जो जिनेन्द्र परमात्मा और उनकी आज्ञानुसार आचरण करने वाले निर्ग्रन्थ गुरू की भक्ति में तत्पर रहती है और त्यागवृत्ति स्वीकार करने में असमर्थता का अनुभव करते हुए आत्मालोचन करती है, वह जघन्य अन्तरात्मा है। स्वामी कार्तिकेय मध्यम अन्तरात्मा की विवेचना करते हुए लिखते हैं कि जो आत्मा जिनेश्वर परमात्मा के वचनों में अनुरक्त हो, जिसका मन्दकषायरूप (उपशमभाव) स्वभाव हो, जो महापराक्रमी हो, जो परीषहादि के सहन करने में सुदृढ़ हो, उपसर्ग आने पर प्रतिज्ञा से चलायमान न हो, ऐसा व्रती श्रावक तथा प्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती मुनि मध्यम अन्तरात्मा है। आगे वे कहते हैं कि जो आत्मा पंचमहाव्रतों से युक्त हो, जो प्रतिदिन धर्मध्यान और शुक्लध्यान में स्थित रहती हो, जिसने निद्रा आदि सर्व प्रमादों को जीत लिया हो, वही उत्कृष्ट अन्तरात्मा कहलाती है। संक्षेप में उन्होंने चौथे गुणस्थानवर्ती आत्मा को जघन्य अन्तरात्मा, पाँचवें एवं छठे गुणस्थानवर्ती आत्मा को मध्यम अन्तरात्मा और सातवें से बारहवें गुणस्थानवर्ती आत्मा को उत्कृष्ट अन्तरात्मा माना है। स्वामी कार्तिकेय ने कहा है कि जो साधु अपने दुष्कृत की निन्दा करता है, गुणवान पुरुषों का प्रत्यक्ष तथा परोक्ष बड़ा आदर करता है एवं अपने मन और इन्द्रियों को जीतनेवाला होता है, उसे अन्तरात्मा कहा जाता है। अन्तरात्मा की साधना को स्पष्ट करते हुए वे लिखते हैं कि निदान और अहंकार रहित बारह प्रकार के तप एवं वैराग्य भावना से अन्तरात्मा अपने । -वही (लोकानुप्रेक्षा)। -वही। 'जे जिणवयणे कुसलो, भेयं जाणंति जीवदेहाणां । णिज्जियदुट्ठट्ठमया, अन्तरअप्पा य ते तिविहा ।। १६४ ।।' 'अविरयसम्मद्दिट्टी, होति जहण्णा जिणंदपयभत्ता । अप्पाणं जिंदंता, गुणगहणे सुछ अणुरत्ता ।। १६७ ।।' 'सावयगुणेहिं जुत्ता, पमत्तविरदा य मज्झिमा होति । जिणवयणे अणुरत्ता, उवसमसीला महासत्ता ।। १६६ ।' 'पंचमहब्बयजुत्ता, थम्मे सुक्के वि संठिदा णिच्चं । णिज्जियसयलपमाया, उक्किट्ठा अन्तरा होति ।। १६५ ।।' -वही । २४ -वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001714
Book TitleJain Darshan me Trividh Atma ki Avdharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyalatashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Soul
File Size8 MB
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