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________________ 178/ साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री के जिन दलिकों को अनुभव करके मृत्यु को प्राप्त होता है, यदि पुनः उन्हीं दलिकों का अनुभव करके मरे, तो वह मरण अवधिमरण कहलाता है।। भगवतीआराधना के अनुसार भी जीव वर्तमान में जैसा मरण प्राप्त करता है, यदि आगामी भव में भी उसी प्रकार का मरण करेगा, तो ऐसे मरण को अवधिमरण कहा जाता है। यह दो प्रकार का होता है :-352 १. देशावधिमरण :- वर्तमान में जैसे आयुष्यकर्म का उदय होता है, वैसा ही यदि एक देशबन्ध कर जीव मरण को प्राप्त करता है, तो वह देशावधिमरण है। २. सर्वाधिमरण :- वर्तमान में आयुष्यकर्म की जैसी प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशों का उदय हो रहा है, वैसी ही प्रकृति आदि का पुनः आयुष्य-बन्ध करता है और भविष्य में उनका उसी प्रकार का उदय होता है, तो वह सर्वाधिमरण कहा जाता है। ३. आत्यन्तिकमरण :- संवेगरंगशाला के अनुसार जो जीव नरकादि भवों में जिन आयुष्यकर्म के दलिकों को भोगकर मरे और पुनः कभी-भी उसी प्रकार के कर्म-दलिकों को न भोगे, अर्थात् अनुभव नहीं करे, तो उसे आत्यन्तिकमरण कहते हैं।353 समवायांगसूत्र में इस प्रकार कहा गया है कि जो जीव वर्तमान में आयुकर्म के जिन दलिकों को भोगकर मरेगा और भविष्य में फिर कभी भी उसी प्रकार आयुकर्म के दलिक को भोगकर नहीं मरे, तो उसका वर्तमान मरण आत्यन्तिकमरण कहा जाता है। 354 भगवतीआराधना के अनुसार मरण यदि भावी मरण से असमान होता है, तो वह मरण आद्यन्तमरण या आत्यन्तिकमरण कहलाता है।355 ४. बलायमरण :- संवेगरंगशाला के अनुसार जो जीव संयम लेकर तीनों योग से च्युत हो गया हो और ऐसी स्थिति में जो मरता है, वह बलायमरण कहलाता है। 356 'समवायांगसूत्र' में जो जीव संयम, व्रत, नियमादि धारण किए हुए हो और अन्त समय में धर्म से पतित होते हुए अक्तदशा में मरण को प्राप्त 351 समवायांगसूत्र १७/१२१ भगवतीआराधना, पृ. ५३. संवेगरंगशाला, गाथा ३४४६. समवायांगसूत्र पृ. ५३. 355 भगवतीआराधना पृ. ५३. 356 संवेगरंगशाला, गाथा ३४५०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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