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________________ द्रव्यानुयोगतर्कणा [213 अथात्र स्वभावानां निदर्शनमाह / अब इस त्रयोदश अध्यायमें स्वभावोंका दृष्टान्त कहते हैं अस्तिस्वभाव आम्नातः स्वद्रव्यादिग्रहे नये / ग्राहकत्वेऽन्यद्रव्याणां नास्तिस्वभाव ईरितः // 1 // भावार्थ:-स्वद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिक नयसे अस्तिस्वभाव कहा गया है और परद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिक नयसे नास्तिस्वभाव कहा गया है // 1 // व्याख्या। स्वद्रव्यादिग्रहे नये द्रव्यार्थिकनयमते द्रव्याणामस्तिस्वभाव आम्नातः कथितः / 1 / तथा द्वितीयो नास्तिस्वभावोऽस्ति, अन्यद्रव्याणां ग्राहकत्वे परद्रव्यादिग्राहकद्रव्यथिकनये ईरितः कथितः / 2 / उक्त च "सर्वमस्तिस्वरूपेण परद्रव्येण नास्ति च" इति वचनात् // 1 // व्याख्यार्थः--अपने द्रव्य क्षेत्र आदिको ग्रहण करनेवाले द्रव्यार्थिक नयके मतमें द्रव्योंका अस्तिस्वभाव कहा गया है / 11 तथा अन्य द्रव्योंको ग्रहण करनेवाले परद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिकनयके मतसे द्रव्योंके दूसरा नास्तिस्वभाव कहा गया है / 2 / ऐसा अन्यत्र वचन भी कहा हुआ है कि "अपने रूपसे सब है और परद्रव्यसे सब नास्ति ( नहीं) उत्पादव्ययगौणत्वे नित्यः सत्तासमाश्रितः / पर्यायाथिके कोऽपि ज्ञेयोऽनित्यस्वभावकः // 2 // भावार्थः-उत्पाद और व्ययकी गौणतामें सत्ता ग्राहक द्रव्यार्थिकनयसहित नित्यस्वभाव है और उत्पाद तथा व्ययके ग्राहकपर्यायार्थिक नयमें अनित्य स्वभाव है; ऐसा जानना चाहिये // 2 // व्याख्या / तथा सत्तासमाश्रितः सत्ताग्राहकद्रव्याथिकनययुक्तो नित्यो नित्यस्वभावः कथितः / कस्मिन्सत्युत्पादव्ययगौणत्वे कश्चित्त तीयः / पर्यायाथिकनय उत्पादव्ययग्राहको भवति तन्मतेनित्यस्वभावः, कश्चित्पर्यायाथिकनय उत्पादव्ययग्राहको भवननित्यस्वभावः स्यादिति // 2 // ___ भावार्थः-और उत्पाद तथा व्ययकी गौणता होनेपर सत्ताका ग्राहक जो द्रव्यार्थिक नय है उससे युक्त नित्यस्वभाव तीसरा कहा गया है / 3 / तथा पर्यायार्थिक नय उत्पाद और व्ययका ग्राहक होता है इसलिये उसके मतमें अनित्य स्वभाव 4 है / तात्पर्य यह कि उत्पाद तथा व्ययको अप्रधानता होनेपर सत्ताग्राहक द्रव्यार्थिक नयके मतमें नित्य स्वभाव है और सत्ताग्राहक द्रव्यार्थिक नयको अप्रधानता में उत्पत्ति तथा नाशका ग्राहक जो पर्यायार्थिक नय है इसके मतसे चोथा अनित्य-स्वभाव होता है // 2 // (1) विष्वपि पुस्तकेष्वयमेव पाठः / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
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