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________________ प्रस्तावना और मोक्ष ये चार वस्तुएँ हैं, जबकि फलकी अभिलाषा, बड़प्पनकी भावना, विषयांधता एवं दुःखीको दुःखी करना ये चार बातें नहीं हैं । अथवा उनमें पांच बातें हैं और पांच बातें नहीं हैं । ज्ञान, विज्ञान, विनय, कृतज्ञता और आश्रितोंका पोषण ये पाँच बातें हैं, जबकि दुराग्रह, असंयम, दीनता, अनुचित व्यय और कर्कश भाषा ये पाँच बातें नहीं हैं । बड़े-बड़े व्यापारी जब व्यापारके लिए प्रवास करते तब ऐसी घोषणा करवाते कि जिसको आना हो वह अमुक दिन और अमुक स्थान पर तैयार होकर आ जाय। ऐसा प्रवासी जनसमूह सार्थ और उसका मुख्य पुरुष सार्थवाह कहलाता था । ऐसे सार्थोंमें त्यागी एवं धर्मयात्रा करनेवाले भी जाते थे, छोटे व्यापारी भी जाते थे और उन्हें व्यापारके लिये सहायताकी आवश्यकता होती तो सार्थवाह वैसी सहायता देता भी था । इस प्रकारके सार्थका वर्णन इसके १० वें पृष्ठ पर आता है। इसके ७ वें पृष्ठ पर एक सेठने अपने पुत्रको जो शिक्षा दी है वह अत्यन्त प्रेरक है। वह शिक्षा देते हुए कहता है कि-हे पुत्र, सर्वकलाओंमें कुशल, विनीत तथा सादी वेशभूषावाले तुझको कुछ कहने जैसा नहीं है तथापि अवसर आने पर गुरु जनको सनाथता बतलानी चाहिए-इस उक्तिके आधार पर कहता है कि हे पुत्र, हम कलासे जीनेवाले और अच्छे वेश एवं आचारवाले वणिक हैं। हमारी युवावस्था भी वृद्ध-स्वभाव जैसी होनी चाहिए, सम्पत्ति उद्धट वेशवाली नहीं होनी चाहिए. अन्य लोग जान न सकें ऐसा हमारा रतिसम्भोग होना चाहिए तथा हमारे दानकी खबर बहुत लोगोंको नहीं होनी चाहिए। इस उद्धरणसे प्राचीन समयमें सम्पन्नवर्गकी जीवनकला कैसी होती थी वह ज्ञात होता है । सम्पन्न वर्गके साथ असम्पन्न वर्ग अवैमनस्य, सहयोग एवं पारस्परिक स्नेहसंबंधसे रहे इसके लिये सुखी वर्गकी जीवनपद्धतिके ऊपर यह बात ठीक-ठीक प्रकाश डालती है। दसवें पृष्ठकी २८ वी गाथामें कहा है कि स्वामि, नौकर तथा सामान्य जनताके घर एक जैसे थे। यह बात सर्वोदय अथवा समानवाद का आदर्श सूचित करती है। ____ आजसे लगभग ढाई हजार वर्ष पहले भगवान् बुद्ध और भगवान् महावीरके समयमें अपहृत स्त्रियों का विक्रय होता था और उसमें बेचनेवालेको कोई भी राजकीय अथवा व्यावहारिक नियम बाधक नहीं होता था । मानवदेहके अपहरण एवं विक्रयका एक उदाहरण यहाँ (पृ. २८९) वसुमती-चन्दनबालाके प्रसंग द्वारा प्रस्तत किया गया है। नगरीको विजेताकी आज्ञासे कोई भी लूट सकता था, और इसीलिए रक्षणार्थ भागती धारिणी रानी तथा वसुमती राजकुमारीको एक कुलपुत्रक जबरदस्ती पकड़कर ले जाता है । शोकसे रानीकी तो मृत्यु हो जाती है, किन्तु वसुमतीको कोशांबीमें लाकर वह बेच डालता है। संस्कृतिकी दृष्टिसे यह एक निन्दनीय बात है। पृ. ४७ में उत्तम, मध्यम एवं अधम इस प्रकार तीन तरहके युद्ध बतलाये हैं। दो प्रतिस्पर्धी राजा सैन्यका संहार रोकनेके लिए परस्पर दृष्टियुद्ध अथवा मल्लयुद्ध करते थे। इन दो प्रकारों से प्रथम उत्तम और द्वितीय मध्यम युद्ध कहलाता था। रणभूमिमें दो प्रतिस्पर्धी राजाओंके सैन्य विविध आयुधोंसे जो युद्ध करते वह अधम कोटिका समझा जाता था। संस्कृतिकी दृष्टिसे यह अत्युत्तम प्रथा है। ___आज लोकव्यवहारमें भी प्रथम कन्याको लक्ष्मीरूप मानकर अपनाया जाता है । इस प्रथाका निर्देश इसमें भी है । इसमें कहा है कि-' पढमा य पत्थणा, ता ण जुज्जइ वयणमण्णहाकाउं राइणो' । (पृ. २३) अर्थात् (कन्याके विषयमें ) पहली प्रार्थना है, अतः राजाका (कन्यादान देनेका) वचन अन्यथा करना उचित नहीं है। हाथमें पानी लेकर कन्याकी सगाई करनेकी प्रथा प्राचीन समयमें व्यापक अथवा प्रदेशान्तरमें प्रचलित होगी। यह बात 'जओ अहं अम्मापितीहि तरस पुत्वं उदयदाणेण दिण्णा' (पृ. १४१) से जानी जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001442
Book TitleChaupannamahapurischariyam
Original Sutra AuthorShilankacharya
AuthorAmrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages464
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size14 MB
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