SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२३ अट्ठासीइमो संधि ४ तावं पराइय तिण्णि स-संदण तिहि-मि तेहिं वोल्लाविउ राणउ णाह विउज्झहि केत्तिउ सुप्पड़ अम्हई तिण्णि तुहारा किंकर पुणु पुणु आयामिय-संगामें । जइ पंडव ण छुद्ध जम-सासणे । घत्ता पहु पभणइ तुम्हिहिं सव्विहि-मि अच्छंतु ताम ते पंच जण किव-कियवम्म-महागुरु-णंदण वंधव-सयण-सोय-विद्दाणउ जो भावइ सो रणमुहे जुप्पइ जिह पर-परहो पयावइ-हरि-हर पहु वोल्लाविउ आसत्थामें तो हउं चडमि वलंते हुवासणे ८ वार-वार वेयारियउ। एक्कु-वि समरे ण मारियउ॥ ४ [दुवई] भिच्च-णराहिवाण अवरोप्परु ए आलाव जावहिं। भीम-किराय-राय-रायहो अणु-रायावसरे तावहिं॥ ढुक्क पास ओणाविय-मत्था विरइय कर-कमलंजलि-हत्था देव देव जले जलयर-क्खोहणु मंत-जलेण सुत्तु दुज्जोहणु सो वोल्लाविउ तिहि-मि सहाएहिं किव-कियवम्म-दोणदायाएहिं णीसरि णाह चयारि-वि जुज्झई पंडव-भडहं भडत्तणु वुज्झहुं जइ जम-सासणु ण णिय णिसागमे तो पइसरहुँ जलणे जालुग्गमे कुरुव-णराहिउ णिद्दए भुत्तउ मणु(रणु?) अवहेरि करेप्पिणु सुत्तउ गय ते तिण्णि-वि कहि-मि स-रहवर अम्हेहिं पत्त वत्त वत्तावर ते परिपुज्जिय वसुमइ-णाहे धायउ वलु रण-रहसुच्छाहें घत्ता सरु वेढिउ तूरइं ताडियइं किउ कलयलु हक्कारियउ दुजोहणु णीसरंतु मरहि संखेहिं णाई णिवारियउ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy