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________________ अमितगतिविरचिता प्रस्तावे ऽत्रास्य पान्थस्य यादृशे स्तः सुखासुखे । जीवस्य तादृशे ज्ञेये संसारे व्यसनाकरे ॥१८ भिल्लवम मतं पापं शरीरी पथिको जनः । हस्ती मृत्युः शरस्तम्बो जीवितं कूपको भवः ॥१९ नरको ऽजगरः पक्षौ मूषिकावसितेतरौ'। कषायाः पन्नगाः प्रोक्ता व्याधयो मधुमक्षिकाः ॥२० मधुसूक्ष्मकणास्वादो भोगसौख्यमुदाहृतम् । विभागमिति जानीहि संसारे सुखदुःखयोः ॥२१ भवे' बंभ्रम्यमाणानामन्तरं सुखदुःखयोः । जायते तत्त्वतो नूनं मेरुसर्षपयोरिव ॥२२ दुःखं मेरूपमं सौख्यं संसारे सर्षपोपमम् । यतस्ततः सदा कार्यः संसारत्यजनोद्यमः ॥२३ १८) १. भवतः । २. क दुःख । २०) १. क शुक्लकृष्णौ। २१) १. क कथितं । २२) १. संसारे । २. क निश्चयात् । बस, अब जैसे इस पथिकके प्रकरणमें उसे सुख और दुःख दोनों हैं वैसे ही सुख-दुःख इस आपत्तियोंके खानस्वरूप संसारमें प्राणीके भी समझने चाहिए ।।१८।। उपर्युक्त उदाहरणमें जिस भीलोंके मार्गका निर्देश किया गया है उसके समान प्रकृतमें पाप, पथिक जनके समान प्राणी, हाथीके समान मृत्यु, शरस्तम्ब ( तृणपुंज ) के समान आयु, कुएँके समान संसार, अजगरके समान नरक, चूहोंके समान कृष्ण और शुक्ल पक्ष, चार सोके समान चार कषाएँ, मधुमक्खियोंके समान व्याधियाँ तथा शहदके छोटे बिन्दुके स्वाद के समान भोगजनित सुख माना गया है। इस प्रकार हे भव्य, उस पथिकके सुख-दुखके समान संसारमें परिभ्रमण करनेवाले प्राणियोंके सुख-दुःखके विभागको समझना चाहिए ॥१९-२१।। इस संसारमें बार बार परिभ्रमण करनेवाले प्राणियोंके सुख और दुखके मध्य में वस्तुतः इतना भारी अन्तर है जितना कि अन्तर मेरु पर्वत और सरसोंके बीच में है-संसारी प्राणियोंका सुख तो सरसोंके समान तुच्छ और दुःख तो मेरु पर्वतके समान महान है ।।२२।। जब कि संसारमें दुख तो मेरु पर्वतके बराबर बहुत और सुख सरसोंके दानेके बराबर बहुत ही थोड़ा (नगण्य) है तब विवेकी जनको निरन्तर उस संसारके छोड़नेका उद्यम करना चाहिए ।।२३।। १८) ब प्रस्तावे त्रस्त, क ड प्रस्तावे तत्र, इ प्रस्तावे त्वस्य । १९) क ड जनैः; ब कूपकः पुनः । २१) अ °कणाः स्वादो; ब संसारसुख । २३) अ त्यजनोपमः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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