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________________ ट्ठिदिसमुदाहारो ३९३ अणुक्कड्डी णिट्ठियदि । एवं याव उक्कस्सिया हिदि त्ति । यथा मदियावरणस्स तथाइमासिं । तं जहा—पंचणा० णवदंस० मोहणीयस्स छब्बीसं अप्पसत्थव०४ उप० पंचंत० । एस अणुकड्डेि बंध०। ६५४. एत्तो सादस्स अणुक्कडिं वत्तइस्सामो। तं जहा—सादस्स उक्कस्सयं हिदि बंधमाणस्स याणि अणुभागबंधज्झवसाणहाणाणि तदो समऊणाए ट्ठिदीए ताणि च अण्णाणि च । विसमऊणाए' हिदीए ताणि च अण्णाणि च । तिसमऊणाए हिदीए ताणि च अण्णाणि च । एवं जाव जहण्णयं असादबंधपाओग्गसमाणं ति ताव ताणि च अण्णाणि च । तदो जहण्णयादो असादबंधट्ठाणादो याव समऊणा द्विदी तिस्से जाणि अणुभागबंधज्झवसाणहाणाणि ताणि उवरिल्लाणि हिदीणं अणुभागबंधज्झवसाणहाणेहिंतो तदेगदेसो च अण्णाणि च । तदो समऊणाए हिदीए तदेगदेसो च अण्णाणि च । तदो दुसमऊणाए हिदीए तदेगदेसो च अण्णाणि च । तिसमऊणाए हिदीए तदेगदेसो च अण्णाणि च । एवं पलिदोवमस्स असंखेंजदिभागो तदेगदेसो च अण्णाणि च । तदो जहणियादोअसादबंधसमऊणादो जा समऊणा हिदी तिस्से हिदीए अणुक्कड्डी झीणा। तदो से काले समऊणाए द्विदीए अणुक्कड्डी झीयदि। जम्हि समऊणाए हिदीए अणुक्कड्डी झीणा तदो से काले दुसमऊणाए हिदीए अणुक्कड्डी झीयदि । यम्हि विसमऊणाए हिदीए अनुकृष्टि समाप्त होती है। इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके प्राप्त होने तक जानना चाहिए । यहाँ जिस प्रकार मतिज्ञानावरणकी अनुकृष्टि कही है, उसी प्रकार इन प्रकृतियोंकी जाननी चाहिए। यथा-पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मोहनीयकी छब्बीस प्रकृतियाँ, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तराय । यह अनुकृष्टिका बन्ध करनेवालेके कहना चाहिए। ६५४. आगे सातावेदनीयकी अनुकृष्टिको बतलाते हैं। यथा-सातावेदनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवके जो अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं, उससे एक समय कम स्थितिके वे और दूसरे अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं । दो समय कम स्थितिके वे और दूसरे अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं। तीन समय कम स्थितिके वे और दूसरे अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं। इस प्रकार जघन्य असातावेदनीयके बन्धके योग्य स्थानोंके समान स्थानोंके प्राप्त होने तक वे और दूसरे स्थान होते हैं। आगे जघन्य असातावेदनीयबन्धस्थानके समान स्थितिबन्धसे एक समय कम स्थितिके प्राप्त होने तक उसके जो अनुभाग हैं वे ऊपरकी स्थितियोंके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानोंसे एकदेश रूप होते हैं और अन्य होते हैं। आगे एक समय कम स्थितिमें उनका एकदेश और दूसरे अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं। इसके आगे दो समय कम स्थितिमें उनका एकदेश और अन्य अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं। तीन समय कम स्थितिमें उनका एकदेश और अन्य अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते है। इस प्रकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थिति विकल्पों तक प्रत्येक स्थितिविकल्पमें पूर्व पूर्वका एकदेश और अन्य अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं। अनन्तर एक समय कम जघन्य असातावेदनीयके समान बन्धसे जो एक समय कम स्थिति है उस स्थितिकी अन कृष्टि क्षीण हो जाती है। आगे अनन्तर समयमें एक समय कम स्थितिकी अनुकृष्टि क्षीण हो जाती है। जहाँ एक समय कम स्थितिकी अनुकृष्टि क्षीण होती है,उससे अनन्तर समयमें दो समय कम स्थितिकी अनुकृष्टि क्षीण होती है। जहाँ दो समय १. ता. प्रतौ ताणि च विसमऊणाए इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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