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________________ २४ । महावीराष्टक-प्रवचन भागचन्द्र भी दोनों सौन्दर्यों का अर्थात् शरीर के सौन्दर्य और आत्मा के सौन्दर्य का साथ-साथ वर्णन करते हैं कनत्स्वर्णाभासोऽप्यपगततनुर्ज्ञाननिवहो, विचित्रात्माऽप्येको नृपतिवर-सिद्धार्थ-तनयः । अजन्माऽपि श्रीमान् विगतभवरागोऽद्भुतगतिः, महावीर स्वामी नयन-पथगामी भवतु मे ॥ सोने जैसा शरीर है आपका, और आप शरीरातीत अवस्था में हैं। देह में देहातीत हैं। देह भी सुंदर है और देहातीत का तो कहना ही क्या? श्री (ऐश्वर्य) सम्पन्न हैं, फिर भी संसार के रागों से परे, रागातीत हैं। महाराजा सिद्धार्थ के पत्र हैं और अजन्मा हैं। जन्म-मृत्यु से परे हो गए हैं। विलक्षण ‘एकमेवाद्वितीय' हैं। ज्ञानी हैं। ऐसे महावीर स्वामी मेरे नयनपथगामी बने रहें, जिससे मैं आपको कहीं अन्यत्र निहारने न जाऊँ, आपको अपनी आँखों में ही विराजमान पाऊँ। *** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001376
Book TitleMahavirashtak Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size3 MB
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