SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ................. भवतु मे । अतानं यच्चक्षु : कमल-युगलं स्पन्दरहितं, जनान् कोपापायं प्रकटयति वाऽभ्यन्तरमपि । स्फुटं मूर्तिर्यस्य प्रशमितमयी वाति विमला, महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ।। २ ।। जिनके लालिमा से रहित अचंचल नेत्र-कमल, दर्शक जनता को, अन्तर्हृदय के क्रोधाभाव की अर्थात् समभाव की सूचना देते हैं, जिनकी ध्यानावस्थित प्रशान्त वीतराग-मुद्रा अतीव शुद्ध एवं पवित्र मालूम होती है, वे भगवान् महावीर स्वामी सर्वदा हमारे नयन-पथ पर विराजमान रहें। ___आँखों के लाल और चंचल होने में मनुष्य के मन का क्रोध ही कारण बनता है। भगवान् की आँखों का लाल और चंचल न होना सूचित करता था कि भगवान् महावीर स्वामी क्रोध के आवेश से रहित हैं, पूर्णरूप से शांत हैं । जब कारण ही नहीं तो कार्य कैसा? पूर्णिमा की रात थी, स्वच्छ चाँदनी छिटकी हुई थी। एक बालक अपने बगीचे में घूम रहा था। वह एकाएक दौड़ा-दौड़ा घर में आया और अपना पेंटिंग का सामान ले, जो अद्भुत दृश्य बगीचे में देखा, उसे पेंट करने लगा। उसने साथ-सुथरे सफेद वस्त्र पर बहुत सुन्दर दृश्य चित्रित किया। किंतु बहुत परेशान था। पूटा गया उससे “क्या हुआ? क्यों परेशान हो?" उसने बताया-“मैंने इस चित्र में और सब तो ठीक बना लिया पर शुभ्र चाँदनी का चित्र नहीं बना पा रहा हूँ उसे कैसे बनाऊँ ?" वह बार-बार आसमान की तरफ देखता है, उस शुभ्र चाँदनी को चित्रित करना चाहता है, रंग भरता है किंतु चाँदनी का चित्र बना नहीं पाता है। आपसे भी पूछे तो आप क्या जवाब देंगे? उसने सबसे पूछा, फिर भी समाधान नहीं मिला। अंतत: उसने गुरु से पूछा-गुरु हँसने लगे। गुरु ने कूची ली, जहाँ कहीं थोड़ा-बहुत अधूरा था, उसे पूरा किया । जहाँ चाँदनी बिछी हुई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001376
Book TitleMahavirashtak Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy