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________________ पात्र होता ही है, साथ ही इतिहास के चिरातिविर दीर्घकाल तक भी निन्दित के रूप में दुर्नाम ही बना रहता है। । अतः आवश्यक है-पहले अपने को परखो, समझो और कुछ बनाओ। तत्पश्चात् अभीष्ट - कार्य की सिद्धि के लिए कर्म क्षेत्र के मैदान में उतरो। कर्म - क्षेत्र में काम करने वालों को भारतीय मनीषियों का कल्याणकारी उपदेश है "कश्चाऽहं काच मे शक्ति-- रिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः" उक्त सूक्ति का भावार्थ है कि बुद्धिमान मनुष्य को कर्तव्य क्षेत्र में उतरते समय यह निरन्तर विचार करना अपेक्षित है-मैं कौन हूँ ? और, मेरी क्या शक्ति है ? जो उक्त सिदान्त पर स्पष्ट रूप से चिन्तन - मनन करता है, वह अवश्य ही अभीष्ट सफलता के शिखर पर पहुँचता है, और जनता में चिरकाल तक आदर एवं सम्मान प्राप्त करता रहता है। इतना ही नहीं, कुछ तो ऐसे विराट पुरुष हो जाते हैं, कि वे इतिहास - पुरुष के नाम से यशस्विता एवं प्रसिद्धि भी प्राप्त कर लेते हैं। उनके जीवन के उज्ज्वल एवं ज्योतिर्मय उदाहरण चिर - काल तक भविष्य की प्रजा के लिए सत्कर्म की प्रेरणा के अखण्ड स्रोत बन जाते हैं जनवरी १९८६ शास्त्र वही, जो जन - जीवन में, ऋत की ज्योति जगाता है। शास्त्र नहीं वह, जो जड़ता काअंधकार फलाता XXXXXXXX १२४ चिन्तन के झरोखे से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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