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________________ महाश्रमण भगवान् महावीर और तथागत बुद्ध के जीवन काल की घटनाएं हैं। भगवान् महावीर का एक कुशिष्य हैगौशालक । उसने साधना के बल पर कुछ योग - शक्तियाँ प्राप्त कर ली। उनके कारण उसे इतना उद्दण्ड दर्प हो गया कि उसने अपना एक नया संघ ही खड़ा कर लिया। यह सब हो जाता है, कोई बात नहीं। किन्तु, उसे अपनी क्षुद्र शक्ति का इतना अहंकार हुआ कि वह एक तरह पागल हो गया। उसके फलस्वरूप भगवान् महावीर के समवसरण में जाकर उसने जो गुंडागर्दी की है, वह इतनी मूर्खता पूर्ण है, जैसे की कोई शियाल महाबली सिंह से युद्ध करने की ठान ले और अन्ततः उसका दुष्परिणाम पा कर इतिहास के रंगमंच पर खलनायक के रूप में देखा जाए। तथागत भगवान बुद्ध का एक शिष्य है, देवदत्त । वह भी बड़ा घमण्डी था और आनन्द आदि उन गुरु बन्धुओं से जलता था, जो सर्वात्मना अपने शास्ता बुद्ध के चरणों में समर्पित थे। बौद्ध इतिहास साक्षी है, देवदत्त का अन्ततः क्या हुआ ? उसने अनेक प्रयत्न किये थे भगवान् बुद्ध को मार देने के । परन्तु भगवान् बुद्ध का तो कुछ नहीं बिगड़ा, परन्तु देवदत्त स्वयं ही पवित्र धर्माचरण के इतिहास में घृणा का पात्र हो गया और इस तरह एक प्रकार से यशोहीनता को भयंकर मृत्यु को प्राप्त हुआ, जो देह को मृत्यु से भी अधिक भयंकर होती है। इतिहास में इस प्रकार के उदाहरणों की कमी नहीं है। किन्तु, अब अधिक लम्बाई में जाने का समय नहीं है। लेख का आशय उपर्युक्त उदाहरणों से ही अच्छी तरह स्पष्ट हो गया है । आशय इतना ही है कि व्यक्ति को कुछ यों ही इधर - उधर के तुच्छ आधार पाकर अपने को महान् नहीं समझ लेना चाहिए। व्यर्थ के अहंभाव से कुछ लाभ नहीं है। विनम्रता ही मनुष्य को गुणवत्ता की दृष्टि से यथार्थ में मनुष्य बनाती है। और, यदि कभी प्रसंगवश करना भी पड़े, तो अपनी शक्ति और साधनों का यथार्थ रूप समझ लेना चाहिए। अपने को तोल लेना आवश्यक है। अपने को बिना तोले, यों ही दन्धि होकर उछल - कूद करना कुछ भी अर्थ नहीं रखता है। अपने जीवन काल में तो वह निन्दा का पहले अपने को परखो तो सही : १२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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