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________________ साहब खुश होने चाहिए, बैंगन की प्रशंसा से खुश हों तब ठीक, निन्दा से खुश हों तब ठीक । अपने को तो हर हालत में राजाजी को खुश रखना है।" विचार कीजिए, “ पण्डितजी जैसे लोगों को प्रलोभनप्रधान मनोवृत्ति के गुलाम सत्य के कैसे पक्षधर हो सकते हैं ।" उन्हें सत्य से कोई मतलब नहीं, उन्हें मतलब है एकमात्र रोटी-रोजी से, हलवे-मांडे से । उनकी पाँचों अंगुलियाँ घी में होनी चाहिए, फिर उनसे कुछ भी कहा लो, करा लो | जाटों का गाँव था । गाँव का मुखिया जाट गप्प मारने का आदि था। गाँव के सब लोग उसकी हाँ में हाँ और ना में ना एकस्वर से मिलाया करते थे। एकदिन उसने कुछ लोगों में गप्प हाँकी - " भई, गजब हो गया । आज रात तो हमारे ऊँट को बिल्ली भगाकर ले गई ।" सब जी हुजूर चिल्लाए-"चौधरी साहब, नालायक बिल्ली ऐसा ही करती है । एक बार वह हाथी को भी भगाकर ले गई थी ।" एक जाट की पत्नी यह सब गप्पबाजी सुन रही थी | उसने अलग में अपने जाट से कहा-“कुछ तो सोचो, जरा-सी बिल्ली और इतने बड़े ऊँट को भगाकर ले जाए ? असंभव! तुम कैसे मूर्ख हो, कुछ भी सोच-विचार नहीं करते। चौधरी की आधारहीन बेसिर-पैर की झूठी बातों को बढ़ावा देते हो, व्यर्थ का झूठ बोलते हो ।” जाट ने कहा – “पागल है तू | कुछ भी नहीं समझती । अरी, हमें चौधरीजी के गाँव में रहना है न ? बस, जो भी वह कहे, उसकी हाँ-में-हाँ मिलाना है । सच हो या झूठ हो, हमें उससे क्या लेना देना।" नीचे का दोहा इसी जी-हुजूरी मनोवृत्ति को उजागर करता है "जाट कहे सुन जाटनी, इसी गाँव में रहना | ऊँट बिलैय्या ले गई, हाँ जी हाँ जी कहना ।।" साधारण लोग तो इस मनोवृत्ति के प्रायः शिकार होते ही हैं । प्रलोभन का छूटना मुश्किल है । उनके लिए यही कारण है कि आज सब ओर (२५२) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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