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________________ श्रेष्ठी पुत्र जम्बू के वैराग्य के सम्बन्ध में एक रूपक दिया जाता है - जैसे किसी वृक्ष की सघन एवं शीतल छाया में विश्राम कर रहा यात्री जब तक बैठा है तब तक छाया का आनन्द ले रहा है, और जब उसे छोड़कर यात्रा-पथ पर कदम बढ़ा देता है, तब उसके मन में वृक्ष के प्रति कोई आसक्ति नहीं रहती, किसी तरह का लगाव नहीं रहता । इसी प्रकार जम्बू के अन्तर्-मन में अध्यात्म-साधना की ज्योति जगी, अपने लक्ष्य पर पहुँचने की भावना जागृत हुई, तो वह तत्काल अपार वैभव एवं ऐश्वर्य छोड़कर अध्यात्म-साधना के पथ पर बढ़ चला | उनकी इस यात्रा ने अनेक सुषुप्त व्यक्तियों के जीवन को जागृत किया है, उन्हें साधना-पथ पर बढ़ने की प्रेरणा एवं स्फूर्ति दी है । और-तो-और, दस्युराज प्रभव, जिसके आतंक से राजगृह ही नहीं, पूरा मगघ काँपता था और सम्राट श्रेणिक स्वयं चिन्तित था, जम्बू के साथ अपने पाँच सौ साथियों को लेकर चल पड़ा गणधर सुधर्मा के चरणों में दीक्षित होने । इसी वैभारगिरि के पावन शिखरों पर प्रभव की अन्तर्-यात्रा प्रारम्भ हुई । यह उनके जीवन का महत्त्वपूर्ण मोड़ था । भगवान महावीर ने तो इन्द्रभूति गौतम जैसे प्रबुद्ध एवं विद्वान मनीषियों को बोध दिया था, दीक्षित किया था । परन्तु आर्य जम्बू ने तो सब ओर धूल उड़ाते जीवन के रेगिस्तान में करुणा, अहिंसा एवं क्षमा की सरिता बहा दी । जहाँ मद्य, मांस, चोरी, लूट-पाट, हिंसा, मानव-हत्या तक करना साधारण बात थी, वहाँ प्राणीमात्र के प्रति करुणा की धारा बह निकली, सदाचार की ज्योति प्रज्वलित हो गई । जम्बू के ज्योतिर्मय जीवन-स्पर्श से प्रभव का जीवन ज्ञान की ज्योति से आलोकित हो गया और यही प्रभव आर्य जम्बू स्वामी का उत्तराधिकारी युग प्रधान, श्रुत-केवली आचार्य बना । कितनी अद्भुत एवं विलक्षण जीवन-गाथा है आचार्य प्रभव की, दस्यु के रूप में शुरू हुआ जीवन महान ज्योति-पुरुष जम्बू के सम्पर्क से एक अध्यात्मयोगी प्रतिभासम्पन्न महान आचार्य के रूप में परिवर्तित हो गया । हाँ तो, यह वैभारगिरि पर्वत भगवान महावीर के जीवन की ज्योतिर्मय गाथाओं से गौरवान्वित रहा है । इस पर्वत के शिखरों पर एवं इसकी उपत्यका में जैन-परम्परा का गरिमामय इतिहास अंकित है । सिद्धगिरि वैभार की पुण्य-भूमि में वीरायतन, पच्चीस सौ वर्ष पूर्व के उस प्राचीन इतिहास को पुनः साकार रूप दे रहा है (History repeats again) । वह प्राचीन इतिहास, जो सुप्त पड़ा था, जिसे जनता भूल चुकी थी, वीरायतन के माध्यम से पुनः जागृत हो रहा है । सेवा, शिक्षा एवं साधना के द्वारा अनन्त ज्योतिर्मय महाप्रभु की दिव्य धर्मदेशना को क्रियान्वित किया जा रहा है । (२२७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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